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________________ [फेवरमारी कमसे कम साप्ताहिक मिटिंग होकर कोनफरन्सकी कार्यवाही चलाई जावे. इस तरहसे हर जगह हर समय कोनफरन्सके कामोंकी चर्चा रहनेसे समुदायका सुधारा हो सक्ता है. ८. चारों जनरल सेक्रेटरी यदि इस कोनफरन्सका काम करते हैं परन्तु उनका काम उसही समय ठीक तोरपर चल सकता है के जब एक जिम्मेवार जनरल सेक्रेटरी उनकी सहायताके लिये खास इसही कोनफरन्सके वास्ते स्थापित किया जावे और उस हीके ओफिससे हमेशा कोनफरन्सके हर कामका सम्बन्ध रखा जावे. ९. सब बात बिना रुपय्या पार नहीं पड सकती है और बिना कायम करने एक " नेशनल फण्ड "के रुपय्या कहांसे आवे ? इसलिये सब समुदायका उत्साह बराबर बना रहै चार आना फी, जैनी फी साल या अमुक रकम फी, घर फी, सालका प्रबन्ध किया जाकर उसही फण्डमेंसे जीर्णमन्दिरोद्धार, पुस्तकोद्धार वगैरहका काम चलाया जावे. हम आशा करते हैं के हमारे भारतवर्षीय जैनी भाई इस मामलेपर पूरा ध्यान देकर अपनी जाति और धर्मकी उन्नति करेंगे. जैन श्वेताम्बर और दिगाम्बर समुदायमें सम्पकी आवश्यकता. . पूज्यपाद चरम तीर्थकर श्रीमन्महाबीरस्वामिके भोक्ष पधारे पीछे जैन धर्मके दो फिरके होगये और उन दोनों फिरकोमें धर्म क्रियाके किसी कदर भेदसे दिन प्रतिदिन फरक पडता गया, यहांतक के आपसमें तीर्थस्थान वगैरह के बाबत झगडे चलकर सरकारी अदालतोंमें एक दूसरेका प्रतिपक्षी होकर खडे होनेका मोका मिला; यह कुल कार्यवाही मापसके बिरोधसे होती रही और अबतक इस बिरोधको मिटानेकी कोशिश किसीकी तरफसे देखनेमें नहीं आई. समयानुसार दोनों फिरकोंके अन्दर बहुतसे सज्जन उच्च शिक्षा पाये हुवे मोजूदभी हैं और दोनों सम्प्रदायोंमें थोडे समयसे महासभायेंभी होने लगी हैं परंतु अबतक इस आपसकी फूटको मिटाकर सम्प करनेका ख्याल किसीने भी न किया. घेताम्बर कोनफरन्सका जलसा तीन सालसे होता है और कई बातों के सुधारेका प्रबन्ध किया गया है परन्तु अबतक इस महासभाके अन्दर या इससे अतिरिक्त श्वेताम्बर संघने दिगाम्बर संघ के साथ सम्प करनेका बिचार प्रगट नहीं कियाहै इसही तरहपर भारतबर्षीय दिगाम्बर जैमियोंकी महासभाअनुमान आठ दस वर्षसे होती है परन्तु उसमेंभी अबतक इस वातका बिचार नहीं किया गया लेकिन आनन्दका समय है कि "दी जैन यङ्गमन्स एसोशियेशन आफ इण्डिया" (The Jain Young Men's Association of India)के जो प्रायः इसही दिगाम्बर सम्प्रदा
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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