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________________ २ कीनफरन्स-रेल्ड. [ फेवरमा पैडीपर उपस्थित रहैं तो क्या चाचर्य! है! जब तक कुल हिन्दुस्थानके जैनियोंको इस महाप्रतापी मण्डलके कृत्योंकी सूचना देकर उनके दिलोंमेंसे हानिकारक बिचारोंको जड समेत न उडाये जायेंगे और इस महासभा के मंजूर किये हुवे ठहरावोंको उनके हृदयमें न जमाये जायेंगे, तब तक इस सुधारेके मण्डलकी कार्यवाहीकी तरक्की शीघ्रतासे नहीं हो सकती है. इन कुल बातों पर ध्यान देनेसे नीचे लिखी हुई बातोंपर बहुत जल्द कुल जैनसमुदायको अमल करनेकी आवश्यकता मालूम होती है: १. सबसे पहिले हिन्दुस्थानके कुल जिलों में और हर जिलेके हर शहर और गांव में के जहांपर एक घरभी श्रावकका हो-जहां रेलका मार्ग हो रेलसे और रेलके अभाव में गाडी, घोडा, ऊंट वगैरहकी सवारीसे या जहां ऐसाही मोका आ जावे तो पेदल फिरकर - जैन कोन - फरसके मंजूर किये हुये मामलातों का उपदेश दिया जावे और यह उपदेश सिर्फ नाम के लिये या एक बारही न दिया जावे बल्के बार २ दिया जावे; और उन सब लोगोंके दिलपर इस महासभाकी कार्यबाहीके फायदे अच्छी तरहपर जमाये जावें के जिस सबबसे कुल जैन समुदायका अमल कोनफरन्सकी बातोंपर पूरा २ हो.* २. सिवाय ऐसे उपदेशकों के जिस कदर हमारे धर्मगुरू और गुरणियां है और जिनको शास्त्रका अच्छा बोध है और कोनफरन्सकी बातोंको अच्छा समझते हैं वे सब बातकी प्रतिज्ञा करें कि जहां २ उनका बिहारहो अर्थात् छोटे मोटे कुल गावों में नित्य कोनफरन्सकी कार्यवाहीपर अमल करनेकी उन गांवोंके श्रावकवर्गको सूचना देकर उनको जिस तरह मुनासिब समझे इस कार्यवाही में प्रवर्तावें. * उपदेशको के गुण - जैन धर्म और कोमकी तरक्की के देनेके लिये देशाटन करें उनके गुण कमसे कम इस प्रमाण १. ओसवाल, श्रीमाल अथवा पोरवाल जातिकेमेंसे किसी जातिके हों अन्य जातिवाले नहो. २. जैनधर्मक तत्वोंका जिनको अच्छा बोध हो. ३. स्वधर्ममें जिनके श्रद्धा संयुक्त रुचि हो और उसद्दी अनुसार आचरण हो. ४. दुनिया के प्राचीन अर्वाचीन हालातका जिनको सही ज्ञान हो. ५. जिनकी वक्तृत्वशक्ति अच्छी हो. लिये जो गृहस्थ कमर बांधकर उपदेश: होवें : ६. जो लोकप्रिय हों. ७. जो शान्त स्वभाववाले डॉ. ८. जो सफर की तकलीफोंको सहन करनेवाले हों. ५. उत्पादबुद्धिवाले हों, १०. केवल जाति और धर्मकी उन्नति जिनके वित्तमें पक्की जड़ पकड़ रखी हो. अ ११. जो अपमान तथा मानको मध्यस्थ भावसे देखनेवाले हों. १२. जो अङ्गीकार किये हुवे कार्यको हरतरह पार पटकनेवाले हों. १३. जिनके लोभी न हो.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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