SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०९. १९०५] पेथापुर कोनफरन्स मालूम होता है, इसही केलवणी के विषय को चर्चते हुवे व्यापारादि के निमित्त. परदेश गमन का संकेत कियागया हैं. आजकल के देश परदेशके तालुकात और उनकी आमद रक्त जारी रहने से नफे. नुकसान की चर्चा जो आमतोर पर जगह जगह होती रहती है उसका यह संकेत. ऐक अक्स है. परदेश गमनसे केलवणी, हुन्नर, कला, व्यापारादि में जो तरक्की होसकती है उस हेतूसे समाज के बीचार के वास्ते इस बातको सूचना के रुपमें दर्शाया गया है. आपलोग खुद्द चतुर हैं, अपनी हालत और जुरुरियात पर नजर डालकर फैसलाकर सकते हैं. पांचवा ठहराव निराश्रित जैनियोंको आश्रय देनेके बारेमें है. यह बिषय सबसे जियादा जरुरी और लक्ष्य देने लायक है क्योंकि अपनी संख्या के कम जियादा होने परही अपनी उन्नत्ति और. अवनति का फैसला है. अपनी संख्या जियादा होनेसे अपना भला और कल्याण होगा. दिन प्रति-, दिन अपनी संख्यामें कमी होनेसे अपना हर तरहका नुकसान है. अपना फर्ज है कि अपने भाई बान्धवोंकी और अपने स्वर्मियोंकी रक्षा करें. छटा ठहराव हानिकारक कुरीति रिवाजको बन्द करनेका पास हुवा है और इस विषयपर बहुतसे बुद्धिवानोंने विवेचन किया हैं. कुल अवनतियों के कारण यह खोटे रीति रिवाज हैं. इनको छोडनेसे अपनी उन्नत्ति बहुत जल्द हो सकती है. यह रीति रिवाज अपने धर्म शास्त्रोंके हुक्म बिलकुल खिलाफ हैं और संग दोष छोड देनेमें अपना सच्चा जैनिपना है. अपने स्त्री वर्गका ध्यान इस तरफ आकर्षित होनेसे यह कुल कुरीतियां एकदम छूट सकती हैं और मैंने इस बातको बहुत खुशीके साथ सुना है कि कलके रोज जब अपने मुनिराज कृपा करके इस मंडपमें पधार कर उपदेश देवंगे उस समय अपने स्त्री वर्गनें इन कुरीतियोंको छोडकर नियम करनेका इरादा किया है. पेथापुर के स्त्री वर्ग के इस स्तुतिपात्र कार्यको अनुकर्ण करती हुई अन्य स्थलकी स्त्रियां जब इस बात पर कमर बांधेगी तो अपना सुधारा बहुत जल्द होगा. __ वकीलोंको अकसर झगडे टंटे की बात ही सूझा करती हैं इस लिये पेथापुर निवासी वकीलोंने सातवें ठहरावमें जो राय प्रगट की है इसके अनुकूल चलनेसे अपने हजारों लाखों रुपयों का जो व्यर्थं खर्च होता है वह बचकर सतोपयोगमें लग सकता है. पांझरापोलोंके बाबत मूंगे ढोरोंके रक्षार्थ जो ठहराव किया गया है इसके मुवाफिक काम करनेसे जैन धर्मका “ अहिंसा परमो धर्मः " का वाक्य अच्छी तरह सिद्ध हो सकता है. कचकडे वगरह चीजों के न बर्तनेका ठहराव जो पास किया गया है यहभी दया धर्मकाही नतिजा है. कलके रोज इस विषय पर विवेचन होनेके बाद इस ठहराव के पास होनेके समय जोः एक सद्गृहस्थनें कागज लिखकर इस बातको मेरे उपर प्रगट किया था कि मोतियोंका व्यापारभी इसही. वर्गमें शामिल है क्यों कि सीप को चीरकर निकाले जाते हैं. यह आप लोगों के बिचार की बात है। आप लोग विवेकवान हैं. खुद खयाल कर सकते हैं. मन्दिरोड्रार वगरह के बाबत जो जो ठहराव हुवे है वे सब स्तुति पात्र है और इन सबकी तरफ़ लक्ष देना मुनासिब है.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy