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________________ १९०५] पेथाथुर कोन्फरन्स.. बंधाववा उपर ओछु लक्ष आपो. आपणी पासे जे मुंडी होय ते जाळवी सखवी जोइए. शास्त्रमा उद्धार- पुण्य वधु कहेलुं छे. बाद मत लेतां आ ठराव सर्वानुमते पसार थयेलो जाहेर करवामां आव्यो हतो. ठराव बारमो-जीर्ण पुस्तकोद्धार बाबत. __“जीर्ण पुस्तकोद्धारनी तथा प्राचीन प्रकरण आदि ग्रंथो ज्यांथी अभ्यास आदि माटे मळी शके एवी जाहेर भव्य पुस्तकालय स्थापवानी आ कॉन्फरन्स आवश्यकता जुए छे." दरखास्त करनार-वकील नगीनदास सांकळचंद. टेको आपनार-शेठ हाथीभाई मुळचंद. वकील नगीनदास सांकळचंदनुं भाषण. निराश्रिताश्रय अने केळवणीना विषयोसाथे जीर्ण पुस्तकोद्धारनो विषय घणो अगत्यनो छे.. आपणा चोविसमा तिर्थंकर श्री महावीर स्वामीना मोक्ष पधार्या पछी आपणो आधार तेमनी प्रतिमापर अने तेमनी आगमारूढ वाणीपर छे अने मारे तमने कहे, जोइए के आपणा धर्मना ग्रंथो तथा आपणां मंदिरो आपणो धर्म साचवी राखवानां साधनो छे अने जेम राणकपुर वगेरे स्थळोए आपणा प्राचीन देवालयो जेम आपणा जैनोनी प्राचीनता तथा धर्मनु भान करावे छे तेम पुस्तको पण आपणा तिर्थकरोनुं भान करावे छे. हालमां श्री महावीर स्वामीन शासन वर्ते छे अने तेमना निर्वाण पछी ९९९ वरस" पछीथी आपणा आचार्योए तथा गणधरोए भविष्य उपर विचार करीने आपणा धर्मनां पुस्तको लखेलां छे. आपणामां प्रथमना वखतमा आचार्योए टुंकी अवस्थामां घणांज पुस्तको लखेलां छे. तेनो ख्याल थवा हुं एक बे दाखला आपीश, आवा पंचम काळमांज थयेला जैन हेमचंद्राचार्ये पोतानी ८४ वरसनी टुक उमरमां कुल साडात्रण करोड . जेटला श्लोक रचेला छे अने तेमां व्याकरणना पण सवा करोड श्लोक रचेला छे, अने हरीभद्राचार्ये १४४० पुस्तको बनावेलां छे. पण अफसोसनी वात ए छे के तेमांना १०० पुस्तको पण हालमां हयाती भोगवतां नथी. प्राचीन काळमां बार बार वरसना बे दुकाळ पडवाथी घणा पुस्तको नाश थई गयां के जेनां नाम के लखाणनी कोईने पण खबर नथी, अने जे कांई रहेलां तेमनो वचला राज्यना वखतमां नाश थयो अने वळी घणी दिलगिरीनी वात ए छे के आपणा स्वामीभाईओमां अरसपरस झगडा थयाथी, कुसंपनी लागणी दाखल थवाथी, भ्रातृभाव कमी थवाथी पण घणां पुस्तको नाश थई गयां. फुल नहीं पण फुलनी पांखडीनी माफक जे कांई पुस्तको रह्यां ते आपणामां अज्ञानरूपी अंधकारनो नाश करवां अने जिनेश्वर भगवाने भाखेला धर्मनुं प्रदीप्त करवा माटे वडिलोए जेसलमेर, खंबात आदि स्थळोए पुस्तको जाळवी राखवा भंडारो कराव्या. पण वचलां राज्यनो अमल बदलाया छतां अने आपणा प्रतापी ब्रिटिश राज्यनी शीतळ छाया नोचे दरेक कोमना धर्मनुं पुरेपुरं संरक्षण थयां छतां पुस्तको बहार नीकळवा पाम्यां नहीं कारण के मालकीनो सवाल प्रबळ थवा पाम्यो अने केटलेक स्थळे अरसपरस भिन्नभाव अने कुसंपनी वृद्धि थवाथी तथा तड आदि तकरारोथी 'हाथमां ए बाथमा ए कहेवत मुजब ए भंडारो उघड्या नहीं अने अफसोस के जिनेश्वर भगवाननी अमृतरस वाणीओने हमेशने माटे केटला
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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