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________________ [जून जैन कोन्फरनस हैरल्ड. मी. मोहनलाल सांकलचंदनु भाषण. आ कोनफरनसना जुदा जुदा वीषयोमां जीव दयानो वीषय हाथ धरेलो छे, जेना वीशे नारण भाइओ ववेिचन करेलुं छे, अने तेनुं अनुमोदन करवानुं मारा प्रत्ये फरमान थयेवं छे. आ भवमाथी छुटी संवर धारण करवानुं आपणा धर्मनुं महा फरमान छे, अने बीजा धर्मवाला सांभळीने अजायब थशे के आपणे कोइपण जीवने हण्या सीवाय, हणाव्या सीवाय, अने बीजो हणतो होय तेने अनुमोदन दीधा सीवाय पृथ्वी उपर जे जे हींसा थती होय अथवा हरगीज जे जे वनस्पतीनो नाश थतो होय तेना पापनो काइक अंशे दरेक मनुष्यनो जीव ओसरावे नहीं त्यांसुधी तेमां भागीदार थाय छे ए बहु उंडो अने महत्वनो सीधांत छे अने तेनुं यथार्थ तात्पर्य समजवामां न आवे त्यांसुधी बीजा माणसने गळे ए सीध्धांत उतरवो मुश्केल छे. तथापि जैन धर्म जीव प्रत्ये दया पालवामां केटलो उंडो उतरेलो छे ते तेमांथी मली आवती अनेक बीनाओ बतावी आपे छे. आपणो प्राचीन धर्म कहे छे के तमाम पृथ्वी अने वायु जीवथी भरेला छे. पचीस वरस पहेला आ वात आधुनीक कहेवाता सुधरेला माने तेम नहातुं. पण आ वात सर्व प्रकारे मान्य थइ पडी छे. घणा रोगोनां कारणो समजवामां नहोतां आवतां, पण हवे अ सीद्ध थयुं छे के वायुना तमाम रजकणो जीवमय छे, अने ते जंतुओ एक जगाएथी बीजी जगाए प्रसार थइ चेपी रोगने फेलावे छे तेथी ते सुक्ष्म जीवो पोता, अस्तीत्वपणुं बतावी आपे छे. . सुक्ष्म जीवो सीवाय स्थुल जविो प्रत्ये जैनोनी लागणीनो दाखलो आखी आलमने लेवा जेवो छे, अने ते दरेक प्रकारे बीजा धर्मवाळाओए पण मान्य करेल छे अने महाभारतमां पण कहयुं छे के, अद्रोहः सर्वभुतेषु, कर्मणा मनसा गिरा अनुग्रहश्च दानं च, सतां धर्मः सनातनः ___ अर्थः-मन, वचन कायाए करी कोइ पण प्राणीनो द्रोह न करवो, दया राखी उपकार करवो ए सत्पुरुषोनो सनातन धर्म छे. मांसाहार करनार माणसो पण जनावर उपर घातकीपणुं गुजारवार्नु नापसंद करे छे, तेना माटे सरकारे कायदा बांध्या छे; सोसाइटीओ स्थपाइ छे. कोइ पण प्राणीने मारी नांखवू तेना करतां तेने दुःख देवु ते गुन्हो मोटो छे, ऐम मानवु ए आ काळनी बलीहारी छे. आपणा भाइओ जाणीने खुशी थशे के युरोप अने अमेरीका खंडमां वेजीटेरीयन सोसाइटीओ स्थपाइ छ, एटले ते सोसाइटीमां दाखल थनारा मांसाहार नहीं करतां वनस्पतीनो आहार करे छे. तेओ अटलुंज करी बेसी रहेता नथी. - आपण अने बुरोपीअन लोके वचे ऐटलोज तफावत छे के आपणे कहेवामां होशीआर छीए पण तेओ पग उपर कोवाडो लेह करी बताववामां हुशीआर छे. आपणे “पेसीव " ए अने तेओ " एकटीव " छे. आपणे आपणुं घर पकडी बेसी रहीए छीए पण तेओ उभा थह पारका घरमां डोकी करे छे, अने तेओ लाग आवे तो पचावी पण पाडे छे. आपणे युरोपीअन अने अमेरीकन लोकोने जैन करवा वीचार आण्यो नथी, पण तेओना पादरीओ अने मीशनरीओनां टोले टोलां आवी
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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