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________________ जैन कॉनफरन्स होल्ड. म सासू सुसरा, देवर, जेठ, पति बगरह सबके बैठे हुवे सबके सामने वह बकणी गालीयां गातीहै कि जो उनके मूहपर कभी न आना चाहीये. इस बातकी देखने और सुननेवाले हमारी स्त्रीयोंके शीलका कहांतक खयाल करंगें. अलावा इसके इन गीतगालसे मिथ्यात्व मोहिनी कर्मका बन्धन होता है कि जिससे अनेक भव करने पडते है और सम्यक्तसे विमुख होना पडता है. - इसही तरहपर एक २ शादीमें हजारों लाखों रुप्पये खर्च करना अथवा आतशबाजी छोडना, रंडीयोंका नाच कराना, हजारों आदमीयोंको जिमाना अपनी मर्यादाके खिलाफ है और जैनीयोंके साधारण स्थितीमें आजानेका यह भी एक कारण है. में इस सब बातोंके आपके खयाल करके उचित प्रबन्ध करनेपर छोडताहूं. जैन विवाह विधिक मुवाफिक लग्न __ अन्य दर्शनियोंकी विधि मुआफिक अबतक जो लग्न होते हैं उनसे जीवहिन्सा बहुत होती है जब कि हमारे धर्ममें सोला संसकार मोजूद है कि जो स्वर्गस्थ श्रीमद्विजयानंद सूरीजी कृत " तत्व निर्णय प्रासाद ग्रंथमें बालबोधमें छपकर प्रगट हो चुके है तो फिर अन्य विधिके मुवाफिक अपने यहां लग्न करना बिलकुल ठीक नहीं है. मेरा मत है कि अब अपनी कुल समुदायमें जैनविधि मुवाफिक लग्न हुवा करें. कन्याविक्रय - सज्जनो! अब एक एसा खेद जनक विषय आया है कि जो अपनी उत्तम समाजपर कलंकलगाने वाला है जो “ अहिंसा परमो धर्स: माननेवाले जैनीयों को जीवता मांस बेचने वाले कसाई साबित कर रहा है, जो जैनीयों को पैमालमे मिलाकर बिलकुल नेस्तनाबूद करनेवालाहै, जो जैनियोंकी स्थितीको धक्का देनेवालाहै-यह सब कामका करनेवाला महान दुष्टकर्म कन्याविक्रयका है. अरेरे, सख्त अफसोस, हम जैन धर्मको धारण करके अपने बचके मांसको बेचें. हमारे बीच अंग्रज अच्छे जिन्होंने आदमीयोंकी खरीद फरोख्त बंद करेदी. गुजरातमेंही नहीं बलके मारवाड मेंभी यह दुष्ट कर्म ज्याही फैलता जाताहै, दक्षिणभी इससे बचा हुवा नहींहै. कैसे शरमकी बातकि हम ढोरूंको कसाईके हायसे बचावें और अपने संतानको कसाईके हाथ बेचें!'सैतानके साथ प्रेम होते हुवेभी नाणा देखकर हमें पाणी आ जाताहै और पैसेके लोममें आकर अबला कन्याको 'बहरा, लूलो. लंगडी, काणा, और वृद्ध मनुष्यके सिर्पद करदेतेहै और यह जान करकि इस विवाहसे मेरी छोरी जल्दी विधवा होनेवालीहै तोभी पैसेके लालचमें आकर प्यारी कन्याको अंधकूपमें धका देदिया जाताहै. यह कुल नतीजा अशानता और वृद्ध विवाहकाहै. में उम्मेद करताहूं कि सबसे ज्यादा इस बातपर ध्यान देकर आपसाहब इस रिवाजको बिलकुल बंद करके इस कसाइ खानेको बंद करके पुन्योपार्जन करंगे.... Fate nic.............. .. ... ... सजनो, मेने इशारे. मात्र यह सब अमेरकी सजना आमको कीईहै. आप खुद अक्लमंद, दाना, तजुकार और दुशयार हैं. इन विषयोपर या अन्य विषयोंपर आपको विवेचन करना मुमातिबहै. मेरे इस कथनमें जो कुछ भूल चूक रहीही या जो कटुबचन कहे गयेहो उनको आपअपनी दपालता.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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