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________________ १९०५] याएर कोनस उत्पन्न होतीहै और उस प्रीतिके कारण वियोग होनेसे लोक होताहै और . शोक होनेसे अश्रुपात बहताहै यातक तो कुदरती बरतावहै परन्तु उस मरे हुवे प्राणीका सोग लेकर बरस छ महिनेतक बैठे रहना, धर्मकृत्यमें शामिल नहीं होना, अथवा जिस तरहपर इस प्रांतमें स्त्रीयोंको बचपनसे छाती खुली करके बाजारमें खुली छाती छाती कूटनेकी. तालीम दीजातीहै और स्त्रीयोंका टोलाका टोला होडाहोड छाती कूट २ कर लोहतिक निकाल लेतीहैं यह सब बातें अकदम नेस्तनाबूद कर देने लायक हैं. अरे भाईयो, सर्वज्ञके धर्ममें चलकर तुम्हारी यह कुचेष्टा कैसा लांछन लगानेवालीहै और क्या आजकलके कालमें आपलोग इस गवारूं रूढीको जारी रखना कभी पसंद करेंगे? में आशा करताहूं इस बातपर आप पूरा ध्यान देवेंगे. बाललय. .... अपने धर्मशास्त्रों में बाललग्नका किसी जगह हुक्म नहीं है न पहीले अपनलोगोंमें बाललग्न होताथा. मुसलमानी राज्यमें कन्यावोंपर जुल्म होनेसे बाललग्न शुरू हुवा और वैष्णवधर्मशास्त्रमें बाललम करनेके हुक्मके श्लोक नवीन बढाये गये. उस समय अगर बाललन प्रचलित हुवा तो उस समय उसकी आवश्यक्ताथी परन्तु अब वह जमाना बदलगया. इसलिये इस रिवाजको अपने समाजमेंसे उठादेना बहुतही जुरूरी है. बॉललमसे स्त्रीपुरुष कमजोर होजाते हैं, संतान निर्बल होती है, धर्मकृत्य नहीं होता, बिद्याभ्यासमें कमी होती है और आखिर कार वह वह कजीये, कदाग्रह होते हैं कि जो रातदिन देखने में आते हैं. यह बाल लम दीन और दुनियाके वास्ते बहुत खराब है इसलिये इसका विचार पूरा पूरा करना मुनासिब है. दलम. . .... .' बाललमसे ज्यादा निन्दनीय वृद्धलम है. विवाह विषय सेवनके वास्ते अथवा संतानोत्पतीके वास्ते है. बुढ़ापेमें इन दोनों बातोंका बल नहीं रहता है फिर समझमें नहीं आता कि साठ बरसका डोसा, जिसके पेटमें आंत नहीं, हमें दांत नहीं, कानसे सुनता नहीं, आंखसे दखिता नहीं, नाड (गन) हिल २ कर उसको शादी करनेको मनाकरती है, मसागमें लकडे पहुंचे हुबे है, यसराज गुलेमें फांसी डालकर उसकी रूहको निकालना चाहता है, घरमें एक दो. युवावस्था वाली बहीव बेटी रांड होकर छातीपर बैठी है एसी हालतमें जो मेरे प्यारे भाईचंद विवाह करते हैं. अपने शिरमें धूल डालते हैं और वह अपना विवाह नहीं करते हैं. किन्तु उन्के पडोसीयोंके लिये वह शादी करके अपने जन्मको बिगाडते हैं और उस गरीब वालाको घोर समुद्र में डबाता है. इसही बदलासे कन्याविक्रयका धंधा शुरू हुवा है अगर सह लग्न बंद होजावे तो कन्या विक्रयभी बंद होसकता है. एसे वृद्ध काकावोंके निसबत तजवीज मुनासिब करना उचित है:---. ::: : विवाह समय फटाणा-( निर्लज्य बकणी गीतगाल) और अनुचित खर्च.--... ए विवाह समय हरख्स अपनी जिन्दगीमें मांसमीक समय समजताहै. इस मंगलकारी विवाहमें माविलय अथवा खुशी करना लाहीये परन्तु नीर्मा उस संपालिकासमा अमंगलकारी कणीनिर्लज्य गीलाल गाकर अपनी बीयताको खुन करती हैं यह उनकी अज्ञान दूकाको दर्शती है. मावापिता,
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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