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________________ १९०५] पेयापुर कोन्फरन्स. १५७ हमारे समाजरूपी महलको मिथ्यात्वरूपी अंधकारसे ढकंदिया है. जबतकः यह मिथ्यात्व हमारा हाथ न छोडे हम किसी तरहकाभी सुधारा करनेमें अश्यक्त है. मानता फैलनेके कई संसारकि कारण थे कि जिनको यहांपर बतलानेकी विशेष आवश्यक्ता नहीं, है.. अज्ञानताके फैलनेसे, वहम, गरीबी, मिथ्यात्व फैला और इनके प्रधान होनेसे अपने आचरण धर्मविरुद्ध होने लगे और जैनी कहलाकर अपन लोगोंने अन्य देवको मानना पूजना शुरु किया, मिथ्यात्वीयोंके त्योहारोंको मानने लगे, ठंडी बासोरोटी खाने लगे, बाललग्न, वृद्धलग्न करनेलगे, कन्याका पैसा लेने लगे, अन्य शास्त्रोंके बताए हुवे हिंसक रीतसें लग्न करने लगे. मरनेके पीछे नुकतेके नामसे जीमनवार करने लगे, हांसी कराने लायक मरनेके पीछे छाती माथा कूटनेके रिवाजको जारी किया, लग्न समय मुंडे खराब निर्लज्य गीतगानकी प्रवृत्ति चली, संतानकी तालीमका कुच्छ खयाल नहीं किया गया. इन खोटे रिवाजोंका विषयवार विवेचन इसवास्ते किया जाता है कि आप साहब और खास करके मैरी बहनें पूरा ध्यान देकर इन नुकसान पहुंचाने वाले रीतरिवाजोंको एकदम अपनी समाजमेंसे दूर करके इसवक्त जो रेतके साथ सुवर्ण मिल करके मलीन हो रहा है उसको स्वच्छ करके तमाम दुनियांमें उसकी अस्ल कदरको प्रगट करदें. १. वहमके कारण अन्य देव, तिथि और त्याहारका मानना-इतवारकी इतवार भैरव, खेत्रपाल वगरह मिथ्यात्वी देवोंके दरशनका नियम; मावडीयों देवीकी प्रायः करके संतानकी खातर स्त्री वर्गमें मानना; विवाह समय गणेशकी स्थापना, घरके दरवाजेपर गणेशकी स्थापना और महान पर्वके (भाद्रवासुदि ४) दिन उसकी पूजा करना, दसेरेके दिन देवीकी पूजा करना, दीप मालकाके दिन शासन नायक वीर परमात्माके मोक्षकल्याणकको भूलकर लक्ष्मी देवीकी पूजन करना, उससे धन मागना; गुजराती माघ १३ ( मारवाडी फागण बुदि १३ ) को शिवकी पूजा करना उसके निमित्त उपवास करना; होलीके दिन अपनी उच करणीको छोडकर भांडोंकी जैसे कुचेष्टा करना, तहजीबको हाथसे छोड देना, होलीको जलाना, पूजना, धूल उडाना; गुजराती फागण वुदि ( मारवाडी चैत्र बुदि) ७-८ को शीतला देवीको पूजना, पहिले दिनका पकाया हुवा बासी ठंडा धान खाकर अनेक बेंद्री जीवोंकी हानी करना अथवा इस दिन शीतला देवीके मठपर गाजे बाजेके साथ जाकर पूजा प्रतिष्ठा करना, चैत्र सुदि ३,४ को गणगोर देवीको इस ख्यालसे पूजना कि यह सुहाग देगी, रंडापेको मिटावेगी; श्रावण सुदि १५ के दिन रक्षाबंदन कराना, इत्यादि अन्य धर्मके त्योहारोंको मान कर अपनी पवित्र श्रधाको मलनि करना पडता है. इस के सिवाय व्यापार, धंदे, रोजगारकी खातर या अपने लडके लडकीको जिलानेकी खातर हे मेरे गुजरातनिवासी प्यारे भाईयो! आप लोगोंको पैंड पैंड पर अपने ज्ञानी धर्मगुरुमहाराजकी जोगवाई मिलनेपर और उनका धर्मोपदेश सुननेपर आप लोग उपर लिखे हुवे कई बातों की तथा पीरकी, अम्बाकी, कालकाकी, भैरवकी, और अन्य देवोंकी मानता मानते हो, होलीके दिन भूखे रहते हो, सीतलाके दिन ठंडा खाते हो, भूत, पलीत, डाकण साकणको मानकर अपने घरोंमें शाणे, भोपे इलाजयिोंको बुलाकर भूत भूतणी कढानेकी मोटी धमास करते हो. कहो, यह कुल बातें कितनी निंदनीय है और विचार करो क्या तुम्हारे करनेके लायक है और क्या एसा वर्ताव करनेसे हम जैनी कहला सकते है और क्या इन बातोंको छोडना मुशकिल है? कहाहै कि
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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