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________________ ... पालीतानाके ठाकोर साहब अबभी अगर खुदका भला चाहते हैं तो उनको अपने साथ अच्छा बरताव रखनेकी इच्छा प्रगट करनी चाहिये तोमें आशा करताहूं कि शायद आप साहब आपकी हमेशाकी दयालुताके सुवाफिक अपराधकी क्षमाकरें अगर एसा न होते, हे वीरपुत्रो ! सिर्फ नाममात्रही बीरपुत्र मत बनो बलके अपना अस्ली बीरपना प्रगट करके दुनियाको दिखलादो कि अत्याचार करनेवालेका क्या हाल होताहै ? अब हमारा पेट इन जुल्मूकी खूराकसे नाकतक भर गयाहै कि जिससे हमको सासतक नहीं आताहै. दोमेंसे एकबात अवश्य करो. यातो अपने धर्मको छोडकर ठाकोरकी गुलामी मंजूर करो या धर्मपर दृढहोकर एसाकाम विचारो और करो कि जिससे ठाकोरकी दृष्टितक हमारे उपर न पडे. यह विषय में आप साहेबोंके खास विचारपर छोडताहूं. पबलिक ओपीनियन. आजकलके समयानुसार अपन लोगोंका फर्ज है कि अपन अपने सामाजीक और धार्मिक मामलत की-चाहे वह भारी हो या हलके हों-इतला, इल्म, आगाही हर खास व आम जैनीकेपास, खुवा वह किसी हिस्से हिन्दुस्थानमें रहता हो, पहुंचाकर कुल समाजकी राय हर मामलेमें एक किया करें और उस बातोंको उन लोगोंतक पहुंचाकर उनको अपनी राय कायम करनेका मोका देवें. अपने गुरु महाराजाओंके देश परदेशके विहारसे अपने ऊपर इस मामलेमें बहुत उपकार होता है परन्तु इसको कामयाबीपर पहुंचानेके वास्ते कई विद्वान उपदेशकों की अवश्यकता है कि बह लोग जगह जगह फिरकर सभाए इकट्टी करके हर जैनीको अपनी राय कायम और जाहर करनेका मोका देवें. अपने मासिक पत्र-जैनधर्म प्रकाश, आत्मानंद जैन प्रकाश, (अफसोस कि इस पत्रके सम्पादककी ताजा मृत्युने हमारी समाजके रत्नों से एक रत्नको उठालिया) आत्मानंद जैनपत्रिका, कोनफरन्स हरैल्ड-और अपना साप्ताहिक पत्र “जैन " अपनी समाजकी अच्छी सेवा कररहे हैं परन्तु इनके सिवाय प्रान्त २ में और अल्हदां २ भाषाओंमें कई पत्रोंका प्रगट होना जरूरी है. साप्ताहिक पत्रोंमें बधारा होनेकी आवश्यक्ता है और दैनिक पत्रके शुरू करनेका समय आगया है. मेरे नजदीक मुनासिब मालुम होता है कि आप साहब इस बाबपरभी पूरा लक्ष देवेंगे. हानीकारक रीतरीवाज. अगरचे इस विषयको मैनें सबसे पीछे लिया है परन्तु लडाइका कायदा यहही है कि या तो पहीले कुछ जोर आता है या अन्तमें जोर आता है. इसही तरहपर जब कि हम लोक अवनतिकी हालतसे लडकर उन्नत्तिका राज्य जमाना चाहते हैं तो यह आखरी हमला ऐसा है कि जिससे अपने पक्षकी जय होनेवाली है इसलिये मेरी यह प्रार्थना है कि इस हमलेमें एकमन एकचित्त होकर दुशमनकी फोजपर गिरोंगे तो जीत हाथमें रखीहुई पावोंगे. अपने शास्त्रोंमें किसीभी हानीकारक रीतरिवाजका हुक्म नहीं है और जिस सत्यधर्मको अपन लोगोंने अंगीकार किया है उसमें कोइ आचरण एसा नहीं है कि जिससे अपन लोगोंका दिल खराब रस्ते जानेको चाहै. इन हालतोंमें यह बात गोरतलब है कि अमृतमें यह जहर किसतरह घुसपडा ? सूर्यके प्रकाशको इस अन्धकारमें किस तरह ढकलिया ? सफेद चीरके ऊपद यह चिकणाईका मैला धबा कैसे लगा, अपने मुक्तीमार्गको इस कुमतिपंथनें आडा पडकर कैसे भुलादिया ? जरा गोर करनेसे मालुम होगा कि, अज्ञानता और खास करके स्त्रीवर्गकी अज्ञानतानें
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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