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पयांपुर कॉन्फरन्स'. जाता होगा कि जब जौनयोंपर पालीताना ठाकोरसाहब की तरफसे किसी न किसी प्रकारकी तहोमत न लगाई जाती हो. इस पवित्र तीर्थ की यात्राके निमित्त कुल हिन्दुस्थानके जैनि जातेहै और यात्री लोग प्रायः करके ब्रिटिश सरकारके या अन्य देशी राजाओंकी प्रजा होतेहै फिर समझमें नहीं आता कि सुलह शान्तिके साथ रहनेवाले जैनसमुदायको पालीताना दरबारकी तरफसे 'इतनी तकलीफ क्यों दीजाती है. कमतीसे कमती दरजेयाले मनुष्यकोभी अपना धर्म वल्लभ होताहै एक दफे एक महेतरको बादशाहके पास लाकर हुक्म दिया गया कि तू अपना धर्म छोड कर मुसलमान हो जाये तो उसे जागीर दीजावेजी जिसपर उस भंगीने कहाकि में अपना धर्म हरगिज नहीं छोड़ सकता हूं. सच है धर्म की लागणी हरशख्सको एसीही होतीहै. धर्मके संरक्षणार्थ लढाईयां होकर खूनकी नदीयां वह जातीहै. फिर समझमें नहीं आता कि हमारे धर्मकी ठाकोरसाहब क्यों असातना करतेहै ? हमारे देव और गुरुकी ठाकोरसाहब जानकर असातना करते हैं. हमारे टौकोंमें खुद बीडी पीते हुवे-और जूता पहिने हुवे गये और अपनी पूलीसको जबरदस्ती भेजा, अंग्रेज और हिन्दुस्थानी आदमीयोंको अपना महिमान तरीके रखकर उनको खास हिदायत करके अपना आदमी साथदेकर भेजते हैं कि टोंकमें जातेहुवे जूता हरगीज न उतारना. हमारे साधु मुनिराजोंको कि जो शीलवान संतोषवान होते हैं फोजदारी कोर्टमें बुलाकर जमानत तलब करते. बारैढ लोगोंको कि जो एक जाचक ग्रोह है उशकेरकर हमारे मुकाबलेमें खडे करातेहै उनकी झूटी फरयादको सुनते हैं हमारी वाजबी दरखास्तको बाबत डाक्टरी इमतिहान उन बदमाशोंके कि जो मजरुबी शरीरके बहानेसे शफाखानेमें झूट झूट पडे हुवे हैं नामंजूर करते हैं गरज कि विनाशकाले विप्रित बुद्धि इस समय पालीतानामें होरही हैं तोभी सुशील जैनी इन आपत्तियोंको समताके साथ सहन कररहे हैं. जैनियोंमें अपना अस्ली क्षत्रिय पराक्रम और पुरुषार्थ मोजूद्र होते हुवेभी द्रयामई धर्मके प्रभावसे वह इस बातका इन्तजार कर रहे हैं कि अबभी ठाकोर साहबकी बुद्धि ठीक हो जावे तो अच्छा है हम उनकी बुराईके निमित कारण क्यों बने. भलाई और नेकीका नतीजा हमेशा नेक है बुराई और बदी यद्यपि किसी कारणसे थोडी देरके वास्ते सारी दुनियाकी नेकीको ढांक ले परन्तु अन्तमें तेलकी गादकी जैसे बुराई नीचे बैठ जाती है और अपनी बदीका मजा चखकर एक कोहनेमें बैठकर अपने कुकर्मोंपर पश्चाताप करतीहै. परन्तु फिरपछताये क्याहो जव चिडियाचुग गई खेत–कवि मिलटननें इस नेकी और बदीपर बहुत अच्छा कहाहै:
“ Virtue may be assailed but never hurt, Surprised by unjust force, but not enthralled; Yea, even that which mischief meant most harm, Shall in the happy trial prove most glory. But evil on itself shall back récoil, And mix no more with goodness, when at last, ... Gathered like soum, and settled to itself, It shall be in eternal restless change, . Self fed and self-consumed. If this fail, The pillared firmament is rotteness,.,.' And earth's base built on stubble.?