SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९०५ ] बेथापुर कोन्कएस. १५३ और तनदुरूस्त जानवरको विना महनत खड़ा रखकर बिगाड़ना नहीं चाहीये बलके उससे उसकी शक्ती प्रमाण काम लेकर उसकी तनदुरुस्ती को ठीक रखना चाहिये और उसकी आमदनीसै पांजरापोलको तस्की देना चाहिये. धर्मादाखाता बराबर रखना. अपने आचार्योंके धर्मोपदेशके मुवाफिक अपने सात क्षेत्रोंका तथा साधारण खाता तथा अन्य कई तरहके शुभ खाते होते हैं और उन सब खातों में अपनी शक्ती प्रमाण रूप्पया दियाजाता है उस रुपयेका बराबर हिसाब रखकर उसको छपाकर प्रसिद्ध करनेकी आवश्यकता है. अपने अपने धर्मशास्त्रोंकी आज्ञाके मुवाफिक इस धर्मांदेखातेका पैसा एसा है कि अगर कोई मनुष्य मन वीगाडकर इसको खाना चाहे तो उसका सब ऐश्वर्य नष्ट होजाता है उसका कुटुम्ब नष्ट 21 वह प्राणी अनंता संसार बढाकर नरक और तिर्यच योनीके कष्ट सहन करता है. एक कुत्तेका दृष्ठांत यहांपर ठीक घटता हुवा होनेसे कहा जाता है : - अयोध्या में एक बाजारमें श्रीरामचन्द्रजीकी समयमें एक कुत्ता बैठा हुवा था उस कुत्ते के एक मनुष्यनें रस्ते के बीच में बैठनेसे लकडी मारी. कुत्तेनें मनुष्यकी भाषामें पुकारकी कि अगर रामके घर इनसाफ होता हो तो तुझे सजा मिलना चाहीये. इस आश्चर्यकारी बातकी इत्तला फोरन रामको हुई तो उस कुत्ते और उसको तकलीफ पहुंचानेवाले मनुष्यको रोबरू बुलाया गया. कुत्तेनें अरज कीई कि में राजमार्गमें बैठा हुवा था मुझे इस मनुष्यनें नाहक मारा अगर इसको उस रस्ते होकर जानाही था तो वह मुझसे बचकर चला जाता. कुत्तेकी दलील ठीक होनेस उस मनुष्यको सजा देना मुनासिब समझा गया चुनाचे उस कुत्तेहीसे पूछा कि तू इसको क्या सजा दिलाना चाहताहै. कुत्तेनें कहा कि अगर मेरी रायपर इस इनसाफको छोडा जाता है तो इस मनुष्यको सोरठ देशका राज्य दियाजावे. रामको यह बात सुनकर और भी आश्चर्य हुवा और कुत्तेसे पूछा कि तेरे ऊपर अपकार करनेवालेपर तू उपकार कैसे करता है ? तो कुत्तेनें जवाब दिया की आप उस मनुष्यसे पूछो. तो सही कि वह सोरटका राज्य कुबूल करता है या नहीं. जिसपर राजानें उस मनुष्यसे पूछा कि तू सोरठा राज्य नदें मंजूर करताहै? जिसपर हाथ जोडकर उस मनुष्यने अर्ज किया कि मुझे आप चाहो फांसी देदें परन्तु सोरठका राज्य यह बात औरभी आश्चर्यकारी हुई तो राजानें इसका कारण पूछा जिसपर उस मनुष्यनें जवाब दियाकि में और यह कुत्ता पूर्वजन्ममें भाई थे. और सोरठ देशमें रहतेथे. इस कुत्तेका जीव मंदिरमें पूजा वगरह बहुत किया करताथा और हमेशा घरपर आकर अपने हाथोंको अच्छी तरह धोकर साफ करके केशर चन्दन घृत वगरह मंदिरका कोइभी हाथके न लगार है इस तरहपर शुचि करके रोटी खाया करताथा. एक दिन मन्दिरके घृतका कुच्छ अंश इसके नाखूनमें लगा रहगया वह इसके पेटमें चलागया जिसकारणसे यह मृत्यु पाकर यहांपर कुत्ता हुवा जब यह एक घतके अंशमात्र पेटमें जानेसे मरकर कुत्ता हुवा तो सोरठके राज्यमें तो जगह जगह मन्दिर और तीर्थ हैं में अगर वहांका राज्य मंजूर करूं और वहांपर अगर किसी कारण मेरे पेटमें मंदिरका पैसा चलाजावे तो न मालुम मेरी क्या गति हो इसलिये में सोरठका राज्य मंजूर नहीं करता आप चाहो मुझे फांसी देदें तो वह में खुशीके साथ मंजूर करूंगा परन्तु सोरठका राज्य हरगिज मंजूर नहीं करूंगा. भाइसाहबो ! इस द्रष्टान्तसे आपको ག་པ་ विदित होगा कि जब अजानपनेमें नाखूनमें रहेहुवे मंदिरके घृतको वह कुत्ता होना पड़ा तो जो साहब कि धर्मादेके खातेको अपना घरूखाता ༡ ༢ मनुष्य खा गया तो उसको मरकर समझकर उसमें गोटाला करते हैं.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy