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________________ १९०२] पेथापुर कोन्फरन्स. मुनी महाराजो आपणा आ काममां मददगार थाय छे अने आ तरफना भागोमां विहार करी जैनोनी सांसारिक तथा धार्मिक स्थिति केवी रीते सुधरे ते माटे सतत् प्रयास करवा लाग्या छे. आ तरफ मुनी बुद्धिसागरजीना विहार पछी आपणामां घणी स्फुरती आवी छे अने जैन धर्म प्रत्येनी आपणी लागणी प्रकाशी नीकळी छे, तेवीज रीते अन्य मुनी महाराजो पण सामान्य कॉन्फरन्सना ठरावोने लोकप्रिय बनाववा यत्न करे छे अने आ कॉन्फरन्सनो हेतु पण एज छे. जो प्रांतिक कॉन्फरन्सो बोलाववामां न आवे तो एक जनरल कॉन्फरन्सनो गमे तेटलो महान यत्न छतां तेनो हेतु जोइए तेवो संतोषकारक रीते पुरो पडी शके नहीं, वास्तेज प्रांतिक कॉन्फरन्स मेळववा आ तरफना आगेवानीए श्रम उठाव्यो छे. बंधुओ, अमारा आ कामने अमारा धारवा करतां घणो सारो आवकार मळ्यो छे ए आपना अत्रे आवा बहोळा समुदायमां पधारवाथी देखाई आवे छे, तेथी तेमज आगेवान जैन बंधुओए तन मन ने धनथी मदद आपवा पोतानी फरज विचारी छे तेथी अमे ए अर्थे आभार मानिये छीए तथा हर्ष बतावीए छीए. साथी छेल्ली पण एक घणा महत्वनी बीनाना संबंधमां हं हवे बोलीश के प्रतापी अंग्रेज सरकारना रामतुल्य राज्यमां आपणा जेवी सुलेहने चाहनारी आवरुदार अने शांतिप्रिय कोमने धर्म फोरववानी जोगवाई नळी छे, के जेवी जोगवाई पहेलांना वखतमां नहोती छतां ते वखते पण धर्मनी अभिवृद्धि थती गई ह्ती छतां आजना आवा समयमां जो आपणा धर्ममां घुसेली अन्य मतावलंबीओनी कुरीतीओ दुर न करी शकीए तो आवा शांतिना समयनो आपणे लाभ लीधो नहीं एवी आपणी थेकडी करावीए, माटेज ए बदनामीमांथी बची जवा ना. शहेनशाह एडवर्डना राज्यनी शांतिदाता राज्यनीतिनो लाभ लेवो आवश्यक छे. मध्य काळमां मारफाड ने जुलमना लीधे तथा केळवणीना अभावे आपणा जैन संसारमा पण अनेक रीतनी कुरीतीओ अने आचार विचार घुसी गया छे अने तेनी तरफ आपणी आजे नजर गई छे तो आपणुं ए कर्तव्यज छे के आपणे ए आचार विचारने तजी देवो ने जैन शासननो वेजय वावटो फरकाववो. एकला हाथे कदी ताली पडशे ? बंधुओ, आपणा धर्मधुरंधर मुनि महाराजो, आपणा मील मालेको अने शेठीयाओ, सराफो अने नाणावटीओ, वकीलो अने बेरिस्टरो, अमलदारो अने खानदानो, डाक्टरो अने वैद्यो, वेपारीओ अने हलालो, टुंकामां जैन कोमना जवाहीर तुल्य गणाता आपणा आगेवानो जेओ आपणा हित माटे जैन श्वेतांबर) कॉन्फरन्सना स्थापको, उत्पादको, व्यवस्थापको, अने कार्यकारो छे, तेओ आपणी सामाजिक था धार्मिक उन्नति करवा भगीरथ प्रयत्न करवा लाग्या छे तेओने तेमना काममां मदद मळे अने सहेलाई थाय ए माटे शुं आवी प्रांतिक कॉन्फरन्सो मेळववानी जरुर नथी ? वहाला वीरो, हुं जणायु र्छ के कांई एकला हाथे ताळी पडती नथी, ने मोर पीछीओ वडेज रळीयामणो लागे छे माटे आपणी आ फॉन्फरन्स मेळववानी जरुरीयात सिद्ध थाय छे अने जो ए जरुरीयात आपणे न पुरी पाडी होत तो आपणे आपणी फरजथी चुक्या गणात. बंधुओ, आपणी कोम साधारण रीते सुखी गणाय छे परंतु कांई कोममा सघळाज सुखी छे एम कहेवाय नहीं. केटलाको एवा पण हशे के जेओने नाणानी मददनी जरुर हशे, केटलाको बुद्धिशाळी छतां शक्ति विना पुरती केळवणी लेई शकता नहीं पण होय, घणाओ चा प्रकारनी केळवणीथी साधनना अभावे बेनसीब रही जता हशे अने थोडाओ मदद विना
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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