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________________ १३६ जैन कॉनफरन्स हरैल्ड. [ मे आपणामां पण घणा अनर्थो थाय छे छतां ज्यारे ए एकतरफी केळवणीना लीधे पण आपणी बुद्धि विकास पामी छे अने आपणी वास्तविक स्थितीनो आपणने ख्याल थयो छे तो ते केळवणीनी साथे धार्मिक शिक्षण मळे तो “सोनामां सुगंध" भळवा जेवुं थाय. तेमज केटलाक एवो पण विचार धरावनाराओ छे के आपणी सामाजिक स्थिति सुधरतां आपणे धर्मना कामने वधु आश्रय आपी शकीशुं. तेओना आ कथनमां कांइक सत्य होय तेम लागे छे अने आमलनेर खाते शेठ लालभाईए पण एवाज विचारो जाहेर कर्यो हता के आपणा दुर्बळ जैन भाइओनी स्थिति जो नहीं सुधरे तो तेओ पेटना पोषण अन्य धर्मनो आश्रय लेई जैन धर्मथी पतित थशे, माटेज आपणी सामाजिक स्थिति सुधरतां धर्मना काममां पण सुधारो थई शकशे, ए कथन सो ए सो टका खरुं छे. सामाजिक स्थिति शाथी सुधरे ? आपणी सामाजिक स्थिति सुधारखानो आधार आपणा पोता उपरज रह्यो छे, अने ते माटे जैन शासननां फरमानोने वळगी रहीने जो संसारिक रीत रिवाजोमां फेरफार करवामां आवे तो मारा आधिन मत प्रमाणे आपणो घरसंसार स्वर्ग समान थतां विलंब थाय नहीं. आपणे संग दोषथी के लांबा परिचय दोषथी अन्य मतोना आचार विचारने आपणा करी मानी बेठा छीए अने तेवा आचारविचारने सहेलाईथी तजी शकता नथी. आवा रीत रिवाजोमां मरण पाछळनां खर्चे, रडवा कुटवानो हानिकारक रिवाज, वरघोडा, कंचनीयोना नाच, बाळलग्न, कजोडां, कन्याविक्रय, अने अन्य धर्मने अनुसरती लग्ननी विधि विगेरे अधार्मिक रिवाजोए आपणामां जड घाली छे, ने ते जड ज्यां सुधी उखडशे नहीं त्यां सुधी आपणी सामाजिक उन्नति थई पण शकशे नहीं. घर संसारनी बदीयो नाबुद करवा माटे स्त्रीओनी मददनी मोटी जरुर छे छतां आपणे तो स्त्री केळवणी तरफ जोइए तेवा खंतीला नथी अने पुरुषोमां पण आ तरफना भागोमां छुटथी केळवणी फेलायली नथी माटे मुख्य तो ए छे के आप केळवणीनो जेम बने तेम वधु प्रमाणमां फैलावो करवो जोइए, अने तेटलाज माटे आपणी कॉन्फरन्सो केळवणीने वधु अगत्य लागु पाडे छे. बंधुओ, आ काम एकना प्रयासथी कदी थई शकशे नहीं माटेज समुदायना बळनी जरुर छे अने समुदायनी शक्ति शुं करी नथी शकती ते कहेवा जेवुं नथी. समुदाय जे धारे ते करी शके छे. केमके “पंच त्यां परमेश्वर" ए सादी कहेवत छे ने पंचमां कुदरती शक्ति आवे छेज जेथी आवा मेळावडामां एकत्र थवानी आपणी योजना सत्य रस्तानी छे एम कही शकाशे. आ कॉन्फरन्समां घणा अगत्यताना विषयो चर्चाशे, एटले हुं विशेष कहीश नहीं पण एक बाबत मारे इसारा रुपे जणाववी जोइए के बहु दुरअंदेशी अने ऐक्यवर्धक तथा देशकाळने अनुसरीने एक बाब खास विचारवी योग्य छे ने ते ए छे के जैनोनी एक बीजानी साथना तकरारना केसोने कोर्टे न लेई जतां तेनो पंचथी निकाल करवो. आ बाबत घणीज महत्वनी छे. आप सघळा जाणो छो के कजियानुं मूळ कुसंप होय छे तेज कुसंपने मूळमांथी छेदी काढवा माटे आ बाबतनो पूरेपूरो अमंल थवानी जरुर छे. वळी एनो अमल करतां जैन भाईओनी घणा प्रकारनी धार्मिक वृत्ति पण केळवाशे अने व्यवहारिक तथा धार्मिक लाभ तेथी मळशे. कोर्टनी देवडीए चडी फक्त संपना अभावे पैसानुं पाणी थवा सा कोममां झेर वेर वधवा पामे छे ने ममत्व बंधाता ए नठारी लागणी मजबुत थती जाय छे विगेरे कारणोथी आ बाबत चर्चवाने लायकनी गणी छे. +
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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