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________________ १९०९] आमलनेर कॉन्फरन्स. ११५ काम थाय तो शुं जेपान करतां आपणे वधारे न करी शकीएं ? आपणे सघळा एकठा थया छीए ते देखाडी आपे छे के आपणामां बंधुत्वनी इच्छा स्फूरी रही छे. कॉन्फरन्सरुपी महेलना पायामां आ पहेलो पथ्थर छे. आपणामां ऐक्यता धीमे धीमे अने पगले पगले नहीं परंतु एकदम थवी जोइए. ज्यां संघ त्यां तिर्थकर अने ज्यां तिर्थकर त्यां संघ छे. ज्यां आत्मा छे त्यां सर्व छे. नामदार गवर्नर जनरल हिंदनो प्रतिनिधि Viceroy कहेवाय छे. तेज प्रमाणे कॉन्फरन्सना चार जनरल सेक्रेटरीओने देशना सर्व भागनी दिलसोझीनुं बळ मळे छे. अमेरिकामां आवेला चिकागो ब्रीज-पुलनो दाखलो ल्यो. एक बार वर्षनो छोकरो कळथी बळ वापर वाने लिधे फतेहमंद थयो ते एक विचारथी थयुं तो आपणा सघळाओना एकत्र विचार- केटलुं बधुं बळ ? ते प्रमाणेना संपथी जरूर फतेह पामशो. धर्मनी भित्रता मोक्ष सुधी पहोंचे छे. संपमा महेनत नथी. कुसंपमा महेनत छे. ज्यां विरोध समजाय, आचारभिन्नता जणाय, त्यां कुसंप थाय. विचारनी विचित्रता ते शुं छे ? · त्रण रंग जुदा छतां त्रणे शोभे छे. ज्यां विचारभिन्नता-विकारभिन्नता होय तो कुसंप जोइए के सुसंप ? कुसंप शिवाय बीजं कांई नहीं. ___ जुदा जुदा गच्छो ते एक हारमोनियमना सप्तक बराबर छे. कदी आपणी धार्मिक क्रियाओ कंइक जुदी जुदी होय तेथी शुं आपणे जुदा थया? जे स्वरो काममा लागे छे ते लईने संप रूप सुर उभो करवो. जो ते युक्ती आवडती होय तो हाल जे तमे बोलो छो अने कार्य करी शकता नथी ते करी शकाय. आपणामां कोई पण जातनो भेद नथी. आपणे दुर्जनने सजन करनारा छीए. तेमने कहाडी नांखनारा नथी अने ते सारु सर्वत्र संप अने बंधुभाव होवानी जरूर छे. मी० भोगीलाल रतनचंदनुं भाषण. मेहेरबान प्रमुख साहेब, प्रतिनिधि बांधवो, सद्गृहस्थो, अने सुशील बेहेनो, " भ्रातृभाव वधारवानो प्रयत्न " ए रीतीना ठरावने टेको आपवा माटे हुं बे चार शब्द बोलवा आपनी रजा लऊर्छ. ए ठराव एटला महत्वनो छे के ए ठराव पसार थया पछी एनो जो पूर्ण अने खरेखरो अमल थाय तो आपणी जैन कोम हाल जे बधी बाबतमां पछातमा छे ते एक सुधरेली अने अग्रणीय कोम थाय. गृहस्थो, भ्रातृभाव एटले भाई जेवो संबंध. भ्रातृ ए शब्दनो अर्थ भाई ए थायछे. अने तेना जेवो भाव ते भ्रातृभाव केहवाय. ते वधारवानो प्रयत्न करवा आ ठराव छे. आपणा हिंदुस्थानदेशना इतिहास तरफ आपणे जो थोडीवार नजर फेरवीये अने विचार करीये के जे देश पहेलां धार्मिक, नैतिक, अने सांपत्तिक स्थितिमां बधा देशो करतां आगळ पडेलो हतो, जेना माटे सुवर्णमय हिंदुस्थान एम केहेवातुं हतुं, जे देशना विद्या, हुन्नर अने रीतरिवाज शिखवा माटे आ पृथ्वी उपरना दरेक देशमांथी विद्वान लोको आवता हता, ते देशनी आवी दयाजनक स्थिति केम थई ? ए देश पारका लोकोना हाथमां केम गयो ? ए देशना विद्या हुन्नर क्यां गया ? ए देश- सुवर्ण बधुं क्यां गयूं ? अने ए देशना लोकोने पोतानी आजीविका पण चलावानी शक्ती केम न रही ? गृहस्थो, आ प्रश्नना उत्तरमा शुं जवाब आपशो ? ए बधानो एकज जवाब छे के ए देशमां भ्रातृभाव तदन अस्त थई गयो
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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