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________________ १९०५] आमलनेर कोन्फरन्स.. १०९ आ ते सद्पुरुषलूं कहेQ केटलं खरं छे, ए कहेवानी जरूर नथी. माटे आटली वारसुधी जणावेली बाबतोनो वीचार करी ते माटे तजवीज करशो एवी आशा राखुंछु. मी० गोवींदजी खीमजी, भाषण. केळवणीनो वीषय घणो महत्वनो छे. बाळपणमां केळवणी आपवाना संबंधमा ख्याल रहेतो नथी. मा बापो जाणे छे के फायदो छे, तोपण घणाओ शीक्षण आपवामां बेदरकार रहे छे. अंग्रेजी शीखवानी हाल घणीज जरूर छे कारण के ते राजभाषा छे. कळाकौशल्य नष्ट थयाथी संपत्ती घटी गई छे अने स्थाति नबळी थती जायछे. आपणो वेपार परतंत्र थई गयो छे माटे उंची केळवणी मेळवानी खास जरूर छे. शीशण मेळवq ए मुश्केलीनुं काम छे, माटे ते सारू बंदोबस्त थवानी जरूर छे. वीद्यार्थी ओए आगळ वधवा खास प्रयत्न करवो जोइए छे अने स्त्रीओने आ जमानामां केळवणी आपवानी घणीज जरूर छे. . मी० मोहनलाल अमरसीनु भाषण. केळवणीथी कोम वीरेनी उन्नती थई शके छे. ज्ञान दर्शन चारीत्रमा केळवधीनो समावेश थाय छे. केळवणी एवा प्रकारनी होवी जोइए के जेथी आत्मीक ज्ञानदर्शन वधे. पाठशाळा वीगेरे छे पण जेवां जोइए तेवां साधनो नथी. जैन वांचनमाळा माटे ज्यांसुधी प्रयास नहीं थाय त्यांसुधी धार्मीक बीज मगजमां रोपाशे नहीं. केळवणी बोर्ड स्थापी तेमां विद्वानोनी कमीटी नीमी वांचनमाळा दाखल थाय तेवो प्रयास थवो जोइए अने ते आपणी बधी शाळाओमां चालवी जोइए. जैन केळवणी खातुं स्थापी इनस्पेक्टरो, उपदेशको मोकली केळवणीनो प्रसार करवो जोइए. माताओ सुशीक्षीत थवा माटे स्त्री केळवीनी खास आवश्यकता छे अने तेना संबंधमां पण ध्यान आपवानी जरूर छे. शा० मावजी दामजीतुं भाषण. हीरो ज्यारे खाणमांथी नकळे छे, त्यारे तेनी कीमत घणी थोडी होय छे. परंतु ज्यारे तेनापरथी माटी दुर करवामां आवे छे, हुशीआर कारीगर पासे तेने साफ करी पहेल पाडे छे, त्यारे तेनी कीमत हजारो तो शुं पण लाखो रूपीयानी थाय छे तेम नीगोदरूपी खाणमांथी नीकळतो आपणो जीव माटीवाळा होरा जेवो छे. ज्यारे तेनापरथी कर्मरूपी माटी दुर करवामां आवे छे अने सद्गुरुरूपी कारीगर जीवन शुद्धस्वरूप ज्यारे समजावे छे त्यारे तेनी कीमत एक कोहीनुर तो शुं, पण लाखो कोहीनुर जेटली कीमतनुं तेनुं मुल्य थाय छे. आवी खबर आपणने कोण आपनार छ ? धर्म छे. माटे धर्मनी केळवणी प्रथम जोइए पछी धर्मनो सार, अर्थ ने काम साधवा जोइए जेथी मोक्ष पण साधी शकाय.. पांचमो ठराव-धर्मोन्नती प्रयत्न. धर्मोन्नतीना प्रयत्नना संबंधमां मि. दामोदर बापुसाए नीचे मुजब दरखास्त मुकी हतीः " पुरुषार्थ चतुष्टयमा धर्मने आद्यस्थान मळेलुं छे अने तेनी उन्नती करवी ए दरेक माणसनी फरज छे अने धर्मोन्नती करनारो वर्ग आपणा पूज्य मुनीराजो छे, जेओए परमार्थ माटे दुनीयानी मोह
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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