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________________ १९०५] आमलनेर कोन्फरन्स. ___ हवे कोई चीजथी जो के, सुख यतुं होय तोपण. आत्माने खरेखर सुख थाय छे के नथी थतुं ए विद्यारंजन वगर मालम पडशे नहीं. साधारण सुख मेलववा पण, माणसने विद्यानी जरुर छे. बीजा प्राणीओने ते नथी. " आ वर्ष वरसादनो वायदो सारो नथी, वरसाद आववा आ वर्षे ग्रहस्थिति सारी नथी, तेथी आ वर्षे दुकाळ पडशे; पछी आपणी आजीविका केम थशे; " ए विचारथी माणस चिंताग्रस्त थाय छे; पण कीडीओने पोतानां इंडां भोंयमांथी लई जवां , अथवा के न लई जवां, अथवा कागडाने पोताना माळाओ झाडनां डाळाओने छेडे बांधवा के वचमां बांधवा, एवी रीतनी चिंता थवाथी तेमना हाथथी भुल थई होय, एम कोई दीवस जोवामां आवतुं नथी. एटलुंज नहीं पण सने १९०२ नी सालमां अमेरकिामां पेरी शेहेर तथा पासेना मुलकमां, पर्वतनो स्फोट थई, जे घणुं नुकसान थयुं, ते पेहेलां बेत्रण महीना, त्यांना जंगली पशु, लांबा जीव अने पंखीओ त्यांथी जतां रह्यां हतां अने घरमां राखेला जानवरो गभरायां हतां, अने कुतराओ रोवा लाग्या हता. टुंकमां कहेवा- ए के बीजां प्राणीओने विद्याज्ञाननी आवश्यकता नथी. पण माणस, वीधा वगरनो, अव्यवरहीत दुःखदायक प्राणी छे. ___ एम जो साधारण बाबतमां विद्यानी जरुर छे, तो पछी, धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष, ए चार पुरुषार्थ साधवा माटे, विद्यानी केटली जरुर छे, ते जूहूं कहेवानी जरुर नथी. सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । अहार्यत्वानहत्वादक्षय्यत्वाच्च सर्वदा ॥ १ ॥ एनो अर्थ ए के, सर्व धनमा विद्याधनज श्रेष्ठ छे; कारण के ते चोरावानी के आपवार्थी ओळु थवानी, जरीके भीती होती नथी. ए हितोपदेशकारना कहेवा प्रमाणे घणाओगें कहेवू छे. हवे केळवणी एटले शुं ? केळवणी एटले लखवू अने वांचवू, एम घणाओगें कहे छे, अने ते वणे भागे खरूं पण छे, कारण केळवणरूिपी जे भव्य पदार्थसंग्रहालय छे तेमां पेसवानो, लेखन अने वांचन ए दरवाजो छे. ए दरवाजानी अंदर गया पछीज, सर्व पदार्थोनुं दर्शन थवानुं अने पछी आपणी बुद्धि, शक्ति, द्रव्यबल, अने बीजी मददथी, जे वस्तु ग्रहण कराय ते करवी, ए खरी स्थिति छ माटे केळवणी मंदिरनी अंदर जवानो रस्तो मेळववोज जोईए. विशेषतः आपणा स्त्रीवर्गमां, बहुज योडानी पासे आ रस्तो छ, माटे तेओने आ पास मेळवी आपवा माटे आपणाथी जेटली मेहेनत थाय तेटली करवी जरूरनी छे. केटलाक प्रसिद्ध ग्रंथकारोए एवी रीतना उद्गार काढया छे के "अमारी मानी साथे फरतां, ८-१० वर्षनी उमरमां, अमोने जेटलुं शिक्षण मळ्युं छे, तेटलुं अमोने आखा जन्मारामां' मळवू शक्य नथी. इंग्लंड जेवा सुधरेला राज्यमां घणाक लोकोने घj शिक्षण एमनी मा तरफीज अपाय छे. जे देशमा महिला वर्ग सुशिक्षित छे त्यां पतीए हाथ झालेला काममां मदद करनारी, छोकरांओने भणावनारी, धर्म प्रसार करवा माटे खरा दीलथी महेनत करनारी, मांदा लोकोनी पोतानी खुशीथी सारवार करनारी, अने एम अनेक रीते, स्वहीत तथा परहीत साधनारी, हजारो स्त्रीओ नीकळे छ; अने महिला शिक्षणना अभावे, आपणा देशमां, कंटाळो उपजावनारो सुर काढी, रस्तेथी लटकमटक चालनारी, माणस मर्या पछी कुटवामां एकमेक साथे हरीफाई चलावनारी, वेवाई वेवण साथे कजीआनुं जोर वधारनारी, देशना भावी आधारस्तंभ जे छोकरांओ, तेमने मूर्ख अथवा अशक्त बनावनारी, अने गोकुल जेवां प्रसिद्ध कुलमां, कलहामी सळगावी ज्यां त्यां वेर वसावनरि
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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