SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन श्री कृष्णलाल वर्मा मनुष्यका जन्म उसके पूर्वसंचित कर्मों के अनुसार उच्च कुल में या नीच कुल में होता है। उसके पूर्व जीवन के संस्कारों के अनुसार जन्म लेने के बाद वह भली या बुरी चेष्टाएँ करता है। जो आत्मा पूर्व जन्म में भक्त था वह इस जन्ममें मी भक्तों की सी चेष्टाएँ करता है। जो पूर्व भव में धर्मद्रोही था वह इस जन्ममें भी इस तरहकी चेष्टाएँ करता है जो धर्मद्रोहियों की सी होती हैं। आज मनुष्यका जो जीवन है वह उसके बचपनसे अबतक किये हुए विचारों, कामों और उसपर पड़े हुए संस्कारोंका पका हुआ फल है। उस फल में पूर्व जन्म के संस्कारोंका भी प्रभाव है; पर वह प्रभाव नगण्यसाही है। __ कर्म के कानून के अनुसार प्रत्येक वस्तु नियंत्रित होती है । मानसिक विचारों के साथ साथ बाहरी आसपासकी परिस्थितियोंका असर भी जीवन पर होता है। और कई बार तो बाहरी परिस्थितियाँ उसके आंतरिक विचारों से ऊंचे उठ जाती हैं। वे मनुष्य के जीवन को उसके विचारों को दबाकर, अपना सेवक बना लेती हैं। एक लडका था। उसके विचार उत्तम थे। उसके घरके संस्कार अच्छे थे; परंतु वह कुछ ऐसे लड़कों की संगतिमें जाने-आने लगा जो बुरे विचारों के थे और जबान तो उनकी बहुत ही गंदी थी। गाली तो उनमें से हरेक के जबान पर ही रहती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि यह लडका भी अनायासही गालियां देना सीख गया और उसके घरके लोगोंकी दृष्टिहीमें नहीं पास-पडौसके लोगोंकी निगाहसे भी गिर गया। एक आदमी था जिसकी जवान बहुत गंदी थी। बात बातमें उसकी जबानसे गाली निकलती थी। भले लोगोंमें आनेजाने लगा जिनकी जबानपर कभी गाली नहीं आती थी। वह ऐसी पुस्तकें पढने लगा जिनमें गाली गलोज और कटु भाषासे दूर रहनेका उपदेश था। धीरे धीरे उसकी गाली देनेकी आदत छूट गई और वह भला आदभी समझा जाने लगा। इनसे यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य का जीवन विचारों और परिस्थितियों से बुरा या भला बनता है। जिस आदमी की समझमें यह सिद्धांत आ जाता है और जो अपने जीवनको उत्तम बनाने का संकल्प करता है वह सबके साथ मधुर व्यवहार करता है। यदि कोई उसका तिरस्कार करता है तो वह उसे अपना दिया हुआ कर्ज आया समझता है; कोई उसे मारता है या सताता है तो वह समझता है यह मैंने पहले दिया था वह ऋग ब्याज सहित वसूल हो रहा है। वह यही सोचकर न तिरस्कार करने वालेको बुरामला कहता है न मारने पीटने और सतानेवालोंसे लडने झगडने बैठता है । वह प्रत्येक स्थितिमें शांत रहता है, और यह समझता है कि मुझे जो कुछ मिल रहा है वह मेरे ही बोये हुए बीजोंका फल हैं। वह सभी मनुष्यों से प्रेम करता है, वह सभी प्राणियों पर दया रखता है । वह सदा इस बातका ध्यान रखता है कि कीड़ीसे कुंजरतक सभी जीव मुझसे निर्भय रहें। मुझे देखकर सभी यहां समझें कि हम यह सुरक्षित हैं। वह निरंतर अपने आत्म भावोंमें लीन होने का प्रयत्न करता है। वह जगतके जीवों के सभी व्यवहारोंको कर्मका खेल समझता है। उस खेलमें यह स्पोर्ट्समॅनकी तरह भाग लेता है। उसकी हार जीतमें समान भाव रखता है। ___ जीतने पर या हारने पर दोनों दशाओंमें वह प्रतिद्वंदियों से स्नेह के साथ गले मिलता है। हारजीतको खेलके मैदान में ही झाड़ पोंछ कर डाल देता है। अगर कभी गुस्से की आग भभक उटती है तो उसे अंतःकरणमें भरे हुए शांतिके जलसे बुझाता है। और तत्कालही भगवानका स्मरण करने लगता है। अगर कभी लालचरूपी सर्प उस पर आक्रमण करता है तो वह त्यागरूपी सर्पके मत्रसे उसका विष उतार देता है। वह सदा इस बात को याद रखता है कि आज मेरा जो जीवन है वह मेरे भूतकालमें किये हुए विचारों और कार्योंका पका हुआ फल है।
SR No.536283
Book TitleJain Yug 1959
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1959
Total Pages524
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy