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________________ श्री हस्ती कुण्डी तीर्थ श्री हजारीमल चंद्रभाण हस्तीकुण्डी ( राष्ट्रकुट ) तीर्थ श्री राता महावीर स्वामी तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। यह महातीर्थ बिजापुर ग्राम से २ मील की दूरी पर स्थित है। बिजापुर एरिनपुरा रोड स्टेशन से ८ मील दूर है। आनेवाले यात्रियों के लिए वहाँ पर मोटरगाड़ी आदि के सर्वसाधन उपलब्ध हैं। यह महातीर्थ गोडवाड पंचतीर्थी श्री रानकपुर के दक्षिण और पूर्व के मध्य में स्थित है। राणकपुर से इथंडी १६ मील है। ____ "श्री पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा का इतिहास" (पूर्वार्ध) में इतिहासप्रेमी मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज ने दिया है। वे पृष्ठ ८०६ पर लिखते हैं कि विक्रम संवत् ३७० में श्री पार्श्वनाथ भगवान् के ३० वें पाट पर आचार्य महाराज श्री सिद्धिसूरिजी हुए। इन्होंने हथुडी नगर के श्रेष्ठि गोत्र के वीरदेव को उपदेश देकर वहाँ श्री महावीर भगवान का मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई। तदन्तर समय समय पर भिन्न भिन्न आचार्य महाराजाओंने इस हथुडी नगर में मनुष्य एवं पशु कल्याण आदि के अनेक कार्य करवाये। उन महात्माओं के नाम इस प्रकार हैंविक्रम नाम ८०६ ३७० श्री सिद्धिसूरिजी महाराज १०२१ ५५८ ,, ककक सूरिजी , १०४२ ६०१ , देवगुप्त सूरिजी,, १०४५ ६१२ ,, सिद्ध सूरिजी , १०४५ , , , , १०४५ १०८० , कक्क सूरिजी ११५२ ७७८ , " " " १३६६ ८६२ " " " " १२८६ ९५२ १५०१ . ९८८ सर्वश्री देव सूरिजी, एक बार राजा राव जगमाल शिकार करके आ रहे थे। उस समय आचार्य महाराज श्रीसर्व देवगुप्त सूरि ने राजा राव जगमाल को देखा। दूसरे दिन राजसभा में उन्होंने उपदेश दिया कि बेचारे निराधार केवल तृण भक्षण करने वाले पशु-प्राणियों का रक्षण करना आपका परम कर्तव्य है, जिसके बदले उनका भक्षण करने को तैयार हुए हो। क्षत्रिय जैसी वीर जाति का यह धर्म नहीं है। जैन तीर्थंकरों ने क्षत्रिय वीर कुल में अवतार लेकर अहिंसा का खूब जोरों से उपदेश दिया था। राजा जगमाल और प्रजा आदि ने इस उपदेश को सुनकर जैन धर्म स्वीकार कर लिया। 'प्राचीन जैन स्मारक' नामक ग्रंथ में पृष्ठ १६ पर लिखा है कि हस्तीकुण्डी गच्छ के जैनाचार्य की नामावली स्थान आदि एक शिलालेख पर कोतरा हुआ है। उसे जोधपुर के मुन्शी देवीप्रसादजी ले गये थे। यह हस्तीकुण्डी (गष्ट्रकुट) राठोडों की राजधानी थी। उसमें बहुत से जैन थे । जोधपुर के इतिहास में लिखा है कि राठोडों की उत्पत्ति का स्थान हथुडी (हस्तीकुण्डी) अथवा कन्नोज में मिलता हैं । इतिहास प्राचीन जैन लेख संग्रह द्वितीय विभाग के पृष्ठ १७५ से १८५ तक देखने से इसका पता लग जायेगा। ___ मुनि श्री जिनविजयजी महाराज उसमें अपनी प्रस्तावना में लिखते हैं " इस संग्रहमें ५५६ जिन मंदिर के शिलालेख हैं। उसमें अहमदाबाद से राजस्थान के कुल मंदिरों का समावेश होता है। इन शिलालेखों मे प्रथम नम्बर का शिलालेख नम्बर ३१८ का है। यह हथुडी तीर्थ राता महावीरजी से मिला हुआ है। इस हस्तीकुण्डी विराट नगरी में अनेक महान जैनाचार्यों ने महान कार्य किया है। जिनके नाम निम्नलिखित हैं :(१) बलिभद्राचार्य, (२) वासुदेवाचार्य, (३) सूर्याचार्य, (४) शान्तिभद्राचार्य, (५) यशोभद्राचार्य, (६) केशरसूरि संतति के पांच आचार्य हैं। उपरोक्त आचार्यों के प्रतिबोध से अनेक भूपतियों ने जैन धर्म स्वीकार कर अपनी उदार भावना का परिचय पृष्ठ " " " " 33
SR No.536283
Book TitleJain Yug 1959
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1959
Total Pages524
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size34 MB
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