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________________ જૈન યુગ ડિસેમ્બર ૧૯૫૮ में ध्यानस्थ महावीर है अतः राजोचित आभूषणों से अलंकृत दौलड़ी मौक्तिक माला (मोती का हार) और वक्ष पर श्री है । आरंभिक जैन साहित्य से हमे पता चलता है कि इस वत्स का चिह्न मूर्ति के सौन्दर्य को और भी बढ़ाते हैं। प्रकार की मूर्तियाँ मौर्य राजा साम्प्रति के शासन के समय जीवन्तस्वामा के दोनों ओर शिखर निर्मित स्तम्भ और विदिशामें रथ-यात्रा के उत्सव पर जुलूस के रूप में मालायुक्त उड़ती हुई आकृतियां तथा और भी ऊपर गजा निकाली जाती थी। इसी प्रकार ज्ञात हुआ है कि मध्य रोही दिखायी पड़ते हैं। महावीर के चरणों के निकट दो युग में सिद्धराज जयसिंह के एक मंत्री, सान्तुक ने प्राचीन चामरधारि आकृतियां अंकित की गयी हैं जिनमें प्रत्येक अकोटा के पास ब्ड़-उदय (वर्तमान बड़ौदा) के जैन- के साथ एक स्त्री है । इन सेवकों की वेश-भूषा और रथ-यात्रा उत्सव में भाग लिया था।" ईसा की नवीं अलंकार कलात्मक ढंग से बनाये गये हैं और मूर्ति के शताब्दी से ११ वीं शताब्दी तक जीवन्तस्वामी का निर्माण की प्राचीन तिथि: दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी सम्प्रदाय जोधपुर के प्रदेश में लोकप्रिय रहा प्रतीत के बीच की संभावना का समर्थन करती है। इसके होता है । डाक्टर शाह ने जीवन्त स्वामी की जोधपुर अतिरिक्त प्रत्येक ओर (शिखर निर्मित स्तम्भों के पास ) से प्राप्त नवीं शताब्दी की एक कांस्यमूर्ति और सिरोही हमें एक स्त्री; एक हाथी; एक घोड़े और एक ग्राह (मगर) से प्राप्त ग्यारहवीं शताब्दी की दो पुस्तर मूर्तियों का भी की आकृति एक के ऊपर एक दिखायी पड़ती है। ग्राहों उल्लेख किया है ।२ की डादों से निकलती हुई एक बेल (सरीष्टम ?) देवता के खींवसर (नागौर, जोधपुर) में प्राप्त इसी देवता . सिर के पीछे एक आकर्षक दृश्य बनाती है। की बहुत ही सुरक्षित ढंग से रखी गयी एक अन्य प्रस्तर नागौर (प्राचीन अहिच्छत्रपुर) प्रदेश की इस आदम प्रतिमा भी गजस्थान की मध्ययुगीन जैन मूर्तियों में कद मूर्ति का सारा विवरण चित्र (मूर्ति) के आधार पर उल्लेखनीय है। यह प्रतिमा जो लगभग ५ फीट ८ इंच किया गया है और इस मूर्ति को मध्ययुगीन राजस्थान उँची और २ फीट चौड़ाई में है, खींवसर से लगभग २ कला की एक उत्तम कृति कहा जा सकता है । खिंवसर की फलींग दूर एक खेत से खोदकर निकाली गयी थी और यह मूर्ति यू. पी. शाह द्वारा वर्णित इसी देवता की सिरोही उस ग्राम के गांधी चौक में एक चौकी पर स्थापित की वाली मूर्तियों से श्रेष्ठ है और जैन मूर्ति कला के विद्वानों गयी है । मूर्ति के पैरों के नीचे बायीं ओर देवनागरी और कला मर्मज्ञों की प्रशसा की पात्र है। लिपि में कुछ अक्षर भी हैं। महावीर की यह मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है और गोलाकार मुकुट, कुंडल; धुंघरू २. वही पृष्ठ ४९-५० प्लेट १७ आकृतियां १, २, ३. युक्त के युर; कड़े; अंगूठियां और पायल (पैर के कड़े) ___३. श्री शिवशरणलाल क्यूरेटर, सरदार म्यूजियम, जोधपुर धारण किये हुए हैं। धोती (एक पोषाक) नाड़े से बंधी की कृपासे प्राप्त सूचनाहुई है और पैर (साथळ) नाड़े से सम्बन्धित (जुड़ी हुई ) एक उरजालका से शोभित हैं। एक वनमाला (एक ४. परम्परानुसार आजानुबाहु दिखाये गये। प्रकार की माला) भुजाओं के पास लिपटी हुई दिखायी ५. सेव के वक्ष पर अंकित श्री वत्स के चिन्ह भी पड़ती है और जो घुटनो से नीचे तक लटक रही है। आकर्षक है ।
SR No.536282
Book TitleJain Yug 1958
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1958
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size8 MB
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