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જૈન યુગ
२८
નવેમ્બર ૧૯૫૮
इसके अतिरिक्त महावीर और गौतम का तथा सुरसुन्दरी
और मैना सुन्दरी का वादविवाद भी संवाद के विषय बन सकते हैं। नवकार मन्त्र की महिमा संबंधी जो एक दो गीत पाये जाते है वे भी साधारण हैं। सेठ सुदर्शन की सूली सिंहासन में और शिवकुमार के लिये शव सोने की मूर्ति में परिणत हो गये, इन घटनाओं का संकेत करते हुए नवकार मन्त्र की महिमा बताने वाले श्रेष्ठ गीत रचे जा सकते हैं। तात्पर्य यह कि जैनगीतों में जो विषय की पुनरावृत्ति हो रही है वह न होकर उसमें विविधता होनी चाहिये।
जैन गीतों की परम्परा अति प्राचीन है जो संस्कृत और प्राकृत से होती हुई हिन्दी और गुजराती से आ मिली है। अधिकांश जैनगीतों की हिन्दी गुजराती मिश्रित है। इसके मुख्य दो कारण हैं। पहला तो यह कि कुछ प्रमुख जैन तीर्थ गुजरात में स्थित हैं जहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में जैनियों का आवागमन बना रहता है।
दूसरा कारण है गुजरातियों की जैन धर्ममें अनन्य निष्ठा । भारतवर्ष के अधिकांश जैन तीर्थों में गुजरातियों का प्रभाव पाया जाता है। धार्मिक कार्यों में तथा जैन साहित्य के प्रकाशन में भी ये लोग काफी पैसा लगाते हैं। गुजराती में अनेक सुन्दर सुन्दर जैन गीत पाये जाते हैं। एक उदाहरण देखिये:
"जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे ते दृष्टि ने धन्य छ । जे जीभ जिनवर ने स्तवे तें जीभने पण धन्य छ । पीये सदा वाणी सुधा ते कर्णयुग ने धन्य छ । तुज नाम मन्त्र विशद धरे ते हृदयने नित्य धन्य छे ॥"
वर्तमान युग की प्रेरणा है कि जैन कवि ऐसे गीतों का निर्माण करें जिनकी भाषा में ओज हो, माधुर्य हो, साहित्यिकता हो, जो मौलिक विचारों के वाहक हों, जिनमें जैन दर्शन का प्रतिपादन हो तथा जो गीति काव्य की कसौटी पर खरे उतरें।
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