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જૈન યુગ.
त०११-४-1010
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अमल भी कर सकते हैं जनिता के पास कोई मांगने जावेगा नाबालिग की दिक्षा-देव द्रव्य आदि चर्चा गजगत में ही ही नहि तो याद रखिये मनयाडर से कोई आफिस में है दूसरे प्रान्तो में नहि मेवाड, मालवा, मारवाड, जन संख्या में भेजेगा भी नहि।
गुजरात से कम नहि. यू. पी. सी. पी. बंगाल, पंजाब, आदि उन्ही प्रचारकों द्वारा जो जैन भाई अजैन बन गये है सभी प्रान्त ऐसे है चाहें तो अधिवेशन प्रति वर्ष करा सकते वापस धर्म में आये जा सकते है। जो धर्म से विमुख होने हैं मगर उनका ध्यान ही रखा जाता तो वे भी उदासान। वाले हो शंका समाधान करके रोके जा सकते है। पुस्तक वतमान में जो एज्युकेशन पर रूपया खर्च होता है भंडारोंको व्यवस्थित कराया जा सकता है। जरूरी मन्दिरोंका वह केवल अक्षर ज्ञान पर होता है धर्म को स्थान नहि जीर्णोद्धार नहि होता और विना जरूरी मन्दिरों के नाम से हिन्दु युनिवरसिटी के विद्यार्थीयो को स्कोलरशीप और दसर लोग धोका देकर ले जाते हैं। धर्मादे को जादाद और धर्मादे धार्मिक वातों में श्वेताम्बरत्व का पूरा ध्यान नहि रक्खा जाता का पैसा लोग दबा बैठे हैं। वह सब पोल खाता आप ऐसी धारणा लोगो में बढती जाता है इसो लिये चरों तर्फ से उपदेश को द्वारा जान सकेंगे और वही लोग पत्र की ग्राहक उदासीनता दीख रही है इन सब बातों के खुलासा और संख्या भी बढा देंगे।
प्रचारखाले पत्र प्रेस प्रचारक हीसाब से उत्तम साधन है आशा
है उसकी व्यवस्था की जावेगी। ..कितने लोगों का ख्याल है कि भाडेके आदमी क्या काम कर सकेंगे उन्हें स्वामी दयानन्द के पंछे साठ
નિરક્ષરતા નિવારણુમાં આપણે ६० वर्षों में उनके वैतनिक प्रचारक और भजनोयोंने लाखों अपने साथी बना लिये ईसाई पादरी सब वैतनिक काम करते है जिन्होंने भारत वर्ष में लाखों ईसाई बना लिये तब मान हिंदुस्तानमा से मार भासा समता पायता जैन कुच्छ न कर सकेंगे. इस बात को देखना चाहिये । छ ल्यारे सभामा सामे यारा, २५
- સોએ રાણું, જાપાનમાં સેએ નવાણું માણસો લખી વાંચી यदि आप छोटी तनखाहवाले गिरे पडे आदमी रखेंगे तो...
શકે છે. અમેરીકામાં માથા દીઠ રૂા. ૬૫) ઇંગ્લંડમાં રૂ. ૩૨) वैसाही काम होगा। अच्छे विद्वान और सेवाभावी सने जपानमा ३.११) भाया
पा७ २य छ रख्खोंगे तो वैसाही काम होगा। यह तो योग्यता पर त्यारे हिंदुस्तानमा भाया
पा७१ ३पाम। मे। निर्भर है कि आप अच्छे आदमी रखकर उनसे काम लेना भी भरयाय छ मा तुस्थिति मताची आपछे गएशनी जानते हैं वा नहि में दाबे से कहता हूं कि योग्य वैतनिक
- બાબતમાં સરકારે પૂરતું ધ્યાન આપ્યું લાગતું નથી. સદ્
ભાગ્યે છેલ્લા સવા બે વર્ષના કાંગ્રેસ સરકારના અમલમાં આ उपदेशक पूरी संख्या में रख्खे जाते और नियमसर संचालन यि त भयान में यायु' भने भाभ नतान भान होता तो कोन्फरन्स का अधिवेशन प्रतिवर्ष अवश्य होता ययु. मापा देशमा अचानता मोटा प्रभाशुभा छे. शुभरहता और अने को निमंत्रण आते रहते ।
રાતની અંદર કેળવણીનું પ્રમાણ તેર ટકા છે તેમાં પુરૂ
ના બાવીસ ટકા અને સ્ત્રીઓના ચાર ટકા. આ સંજોગોમાં - यदि कोन्फरन्स की प्रगति बढाना है तो जैन युग को
ગુજરાત અને કાઠીઆવાડમાં કામ કરતી આપણી જૈન साप्ताहिक कीजीये. उस की पृष्ट संख्या दूसरे सप्ताहिक पत्रों संस्थामा पारे तो ध म श म छ. आपली समान बढाईये। वैतनिक सम्पादक रखिये. निजका प्रेस
જૈન સંસ્થાઓએ નક્કી કરવું જોઈએ કે ત્રણ વર્ષમાં ગુજરાત खोलिये. आगम और दूसरे शास्त्रो का मूल और अनुवाद हावा ने मे.
અને કાઠીઆવાડમાં એક પણ અજાણુ જેન ભાઈ કે બેન ન
आपन संस्था हेय त्यांना मानसंसार के सामने चाहये पूरी संख्या में प्रचारक रखकर भारत के पानुना नाम पास शत मत माया गया सभी प्रान्तों में कोन्फरन्स का प्रचार कराईये तब जनता બેનના નામ જાણીને તેમને અક્ષરજ્ઞાન આપવાને પ્રબંધ आपके साथ होगी।
કરવો જોઈએ. માત્ર જૈનેની વાત કરવાનું હતું તે એ છે કે
આપણી પાસે પુરતું ફંડ નથી કે આપણે દરેક કેમને પહોંચી अभी तो कोन्फरन्स गुजरात काठियावाड काही विशेष वास. मा सिवाय गाभाभा शरमा रहेता शिक्षित ध्यान रखती है कुच्छ हिन्दी पान्तों का भी ख्याल कीजीये ना देने की ४२ मे मभु अशिक्षितने उधर के नेताओंसे तबादप्ता ख्यालात कीजये उन देशो में .
ભણાવીશ. દરેક કેમે આ બાબતમાં પહેલ કરીને હિંદુસ્તાન
માંથી નિરક્ષરતાને કાયમને માટે દેશવટો આપવો જોઈએ. प्रचारक भेजके पढने को हिन्दी साहित्य दीजये जैन युगमें भान अजानका ३८३ पडेमो भने ३दी। सभामा ५२ हिन्दी की व्यवस्था कीजये तो हिन्दी प्रान्तो में भी उत्साह से शनि छ? तो आ मानतमा आपा स्थायी योजना स्वागत हो।
. पी .
-કેશરીચંદ જેસીંગલાલ.