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त०११-४-१९४०
जैन युग.
= स्टेन्डिग कमिटी से निवेदन = समय देनेवाले व्यक्ति-पत्र-प्रेस-प्रचारक-उच्चकोटि के होने चाहिये ।
. ( लेखक :- श्रीयुत जवाहरलाल नाहटा-भरतपूर.) श्री जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स के प्रस्तावानुसार समस्त इस लिये जैन युग को शीघ्र सप्ताहिक कीजिये, प्रष्ट भारतमें तभी कार्य हो सकता है जबकि उसकी उपयोग्यता सभी संख्या अन्य सप्ताहिक पत्रो के समान बढाईये और अनुभवि प्रान्तों के प्रत्येक जैन को जाकर समझाई जाय । हरेक व्यक्ति वैतनिक सम्पादक से पत्र का सम्पादन कराईये, ऑनररी जब तक किसी बात के हानि लाभ पर बिचार नहि कर लेता सम्पादक के पास इतना समय नहि जो पत्र को जनता की तब तक उसका उस पर चलना कठिन है।
ईच्छानुसार सर्वांगसुन्दर बना सके. उस पत्र में हिन्दी विभाग प्रेसीडेन्ट, रेसीडेन्ट जनरल सेक्रेटरी और दूसरे नेता भी खोलना चाहिये ताकि हिन्दी प्रान्तों की सहानुभूति आपके देश में भ्रमण नहि करते, दैनिक समाचार पत्र नहि जो साथ हो । व्यापारी राजद्वारी, और नवीन समाचारों का भी नित्य आपका सन्देश जनता तक पहुंचा सकें, ऐसे जबरदस्त समावेश हो ताकि पाठकों को सर्व प्रकार की जानकारी हो प्रचारक नहि जो अपने व्याख्यानों द्वारा जनता को अपनी सके और ग्राहक संख्या भी बढे. विश्वास रखिये यदि पत्र का तर्फ खींच सकें, घर का प्रेस नहि जो सस्ते में सस्ता जैन सम्पादन श्रेष्ट हुवा तो घाटे की जगह मुनाफा होगा। साहित्य जनता को दे सकें। ऐसी दशा में संस्था का
निजका प्रेस हो। प्रचार कैसे हो।
- जब तक कोन्फरन्स अपना प्रेस नहि खोलती जीर्ण पदाधिकारी समय देने की प्रतिज्ञा करें। - पुस्तकोद्धारवाला प्रस्ताव अमल में नहि ला सकती. अभी तक __मेम्बरान और पदाधिकारी केवल बातें बनाकर गायब अप्रकाशित शास्त्र ढेरों पडे हुवे हैं नदि वह गल गये तो याद न हो जावे । कुच्छ काम करें, समय से पूर्व आवें और पश्चात रखिये दूसरी चीजें जैन धर्म की समाप्ति को नहि रोक सकेंगी। जावे. कोई ऐसी मिटिंग न होनी चाहिये जिसमें किसी मेम्बर प्रेससे ही शास्त्र उद्धार कीया जा सकेगा सस्ता जैन साहित्य की गैर हाजिरी हो. और यदि बिला वजह हो तो उस्से भेट संसारको देसकेंगे जैन धर्मको पुस्तकोद्धारा देश विदेशमें फैला स्वरूप कुच्छ फंड में लेना चाहिये और सबको प्रतिज्ञा करनी सकेंगे जिस में आपका सप्ताहिक पत्र तो मुफतमें निकल चाहिये कि वर्ष में इतना समय आपनी जिन्दगी का समाज सकता है। कुच्छ काम संसारके सामने आना चाहिये. जनता को भेट करेंगे। किसी को केवल कुरसीयां तोड़ने के लिये नहि ठोस काम देखना चाहती है। स्थानकवासी जैन कोन्फरन्स चुना जाय. उनसे प्रतिज्ञा लैनी चाहिये कि वर्ष में मास दो मास हमसे पीछे कायम हुई थी जिसने भी अपना प्रेस खरीद लीया तीन मास अमूक टाईम घर का काम छोडकर जैनों के उत्थान और हम जहां थे वही पडे है। वास्ते देश में भ्रमण करेंगे। बारह महीने पेट पालने में जाते यदि प्रेस खोलकर ४५ आगम और दूसरा प्राचीन है तो कुच्छ समय कोन्फरन्स के हेतू भी खर्च करना चाहिये। साहित्य मूल और भाषान्तर संसार के सामने ला सकें तो सभी नेता देश में भ्रमण किया करते है तो हमारे नेता चुप हम जैन धर्म को बड़ी से बडी सेवा कर सकेंगे। वर्तमान क्यों है वह भी भ्रमण करके आत्मत्याग का परिचय दें। जमाने में प्रेस भी प्रचार का मुख साधन माना गया है। पत्र साप्ताहिक किया जाय।
वैतनिक प्रचारक रख्खे जाय। वर्तमान में जैन युग जिस दशा में निकलता है, जिस प्रचारकों की जरूरत इस लिये विशेष है कि आप तो प्रमाण में उसकी ग्राहक संख्या है सिवाय स्टेन्डिंग कमेटी के तीन दिन अधिवेशन करके चूप हो जाते है। प्रस्तावों को मेम्बरों के जिन्हें अनिवार्य खरीदना पडता है, दूसरा कोई ग्रामीण जनता तक कौन पहुंचावे । अधिकांश लोग बे पढे अधिक ग्राहक नहि इससे आप समझ लें जनता क्या चाहती हैं। है बहुत से निर्धनता के कारण पत्र मंगाते ही नहि बहनो को
___ हवाई तार टेलिफून रेडीयों के जमाने में आपकी पन्द्रह पढ़ने का अवकाश ही नहि, बहनो को पढने की रुची ही दिन पुरानी खबरें सुनने को कोई तैयार नहि. जनता दैनिक नहि, ऐसे लोगों तक आपका सन्देश प्रचारक हो तो पहुंचा पत्र चाहती है यदि आप प्रबंध नहि कर सके तो साप्ताहिक सकते है । किसी को सन्देह होवे तो उसे समझा भी सकते हैं आवश्य कीजये जिसके द्वारा आपका सन्देश महीने में चार ४ ग्रामों में पंचायतें कराकर प्रस्तावानुसार ठहराव भी करा वाणो जनता तक पहुंच सके।
सकते हैं. चंदा भी कर सकते हैं. चार आना प्रति मनुष्य