SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बैन युग 1101-3-16४० श्री सम्मेत शिखरजीकी बनवाने वालोने किस आशय से यह उसस्थान पर बनवाई हैं। कानपुर बड़ा व्यापारी शहर है और मेरी यात्रा अच्छी रौनक है। कानपुर से सीधा हम लोग लखनौ और उस संबंधि कतिपय विचार. चले गये। लखनौ अमीनाबाद पार्क में ही हम ठहर (लेखकः--सुंदरलालजी जैन.) गये। अपने १४ मन्दिर लखनौ में हैं। ९ मन्दिर ३ दिसंबर को हम सात स्त्री पुरुष लाहार से शहर में हैं। और ५ दादा वाडी में (शहर से लगभग श्री सम्मेत शिखरजीकी यात्रा के लिए रवाना हवे। ४ माईल पर)। यहां एक मुनिराज के भी दर्शन हवे। प्रातःकाल दिल्हि पहुचे। आग्राकी गाडीमें दो घटे मंदिरों का दर्शन करते २ बा. स्वरूपचंदजी की भक्ति टाइम था इसलिये साधीजी श्री चित्तश्री आदि चित्तको मोहित करनेवाली थी। आप बढे मिलनसार. साध्वीयों का दर्शन करने उपाश्रय गये। दर्शन कर प्रभु भक्त हैं। पता लग जाये कि कोई उनका स्वधर्मी वापिस स्टेशन पर पहुंचे। स्टेशन पर ही खाना पीना भाई आया है फिर विना खिलाये उसको जाने नही करके गाडीमें बैठ गये। राजाकी मंडी स्टेशन पर देंगे। दादा वाडी से मन्दिरों के दर्शन कर चित्त में शामको उतरकर हम रोशनमुहल्ला आग्रा की जैन श्वेता- विचार होवा था कि जिस महानुभावोंने इतनी भक्ति बर धर्मशाला में चले गये। वहीं बा० दयालचंदजी से से यह देवालय बनवाये हैं आज उनकी पूरी सेवा पता मिला कि मुनिराज श्री १०८ श्री दर्शनविजयजी भक्ति करनेवाले भी नजर नहीं आते। लखनौ बढा आदि त्रिपुटी श्री शोरीपुर तीर्थ से प्रातः ही विहार रौनक वाला शहर है। यू.पी. गवर्मेन्ट का हैडक्वाटर करदेंगे। अस्तु बाबुजीने काफी प्रयत्न कर हमारे लिये है। लखनौ से सवार होकर हम सोहावल स्टेशन पर पकटेक्सी २१)रु. में श्री शौरीपुर तीर्थ तक आने जाने की उतरे। सोहावल छोटासा स्टेशन है। वहांसे लगभग २ करदी। हम दसरे दिन मातः ही४ बजे चलपडे । आग्रासे माईल के उपर रत्नपुरी तीर्थ है। मन्दिर दर्शनीय है श्री शौरीपुर तीर्थ लगभग ४५ माईल है। सडक पक्की है यहां पर श्री धर्मनाथ प्रभु के चार कल्याणक हुवे हैं। लेकिन आखिरमे कुछ रास्ता बडा खराब है। हम धर्मशाला है। पास छोटासा गांव भी है। वापिस सात बजे के करीब वहां पहुंच गये। मुनि महाराज सोहावल आकर गाडीसे अयोध्या स्टेशन पहुंचे। विहार करने वालेही थे कि हम लोग पहुच गये। कटरा महाल में श्वेतांबर जैन धर्मशाला व मंदिर है। दर्शन कर चित्त प्रसन्न हुआ। तीनों ही योग्य महात्मा यहां पर ऋषभदेव भगवान के तीन कल्याणक तथा हैं। श्री शैरीपुर तीर्थ में भगवानका दर्शन पूनन श्री अजित, श्री अभिनंदन, श्री सुमति तथा श्री अनंत किया। एक मन्दिर है धर्मशाला है। दिगम्बरों के प्रभ के प्रथम ४-४ कल्याणक हुवे हैं। प्राचीन मंदिर साथ यहांभी झगडा है यहां पर भगवान अरीष्टनेमी का जीर्णोद्धार हो रहा है। हजारो रु. जीर्णोद्धार पर के जन्म तथा च्यवन दो कल्याणक हुवे हैं। बिल्कुल लग रहे हैं। अमदावादसी एक बड़ी माताजी पूर्ण मामूली गामडा है। खा पीकर वापिस आग्रा पहुचे। भक्ति, लगन तथा प्रेम से सब कार्य करवा रही हैं। आग्रा में देखने लायक ताजबीबी का मकबरा तथा लगभग आठ बरस से जीर्णोद्धार का कार्य वह लाल किल्ला है। श्री शौरीपुर तीर्थ को शिकोहाबाद अकेली करवा रही हैं। घर वार छोडकर केवल स्टेशन से भी जा सकते हैं वहां परसे केवल १२ तीर्थोडार के लिये अपना जीवन अर्पण कर दिया मोल पड़ता है। बैलगाडी मिलती है। आगाम लगभग है। स्वयं रु. इकट्ठी करती हैं। और लगवाती हैं। ११ अपने मंदिर है। वापस आश्रा केन्ट से चढकर मनिमपं. ज्येशारामजी भी मिलनसार तथा उत्साही हम सुबह कानपुर पहुंचे। स्टेशन की धर्मशाला में हैं। जिस प्रकार मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा है आशा हम लोग ठहर गये। स्टेशन से लगभग आध माइल है अभी काफी समय लगेगा। परन्तु यह सर्वथा ठीक है कि पर भव्य काच का मंदिर है। मन्दिर अत्यन्त मनोहर अगर यह मन्दिर कभी तैयार होगया तो सारी है। देखने के काबिल है। परन्तु मन्दिर के साथ ही अयोध्या नगरी में इसके समानका एकभी मन्दिर नही म्युझियम के ढंग पर अनेक चीजें रखी हैं जिसमें की होगा। प्राचीन मन्दिर के नीचे भोयरे में भी प्राचीन कुछ अनुचित नंगी मूर्तियां पवित्र स्थान के प्रभाव को मूर्तियां है जो कि उसी भोयरे से कभी निकली थी। क्षणभरके लिये नष्ट कर देती है। न मालूम मन्दिर [ अपूर्ण
SR No.536280
Book TitleJain Yug 1940
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dipchand Chokshi
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1940
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy