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________________ ११४ -नयुग-- ता.१५-१-३४. न....वी.............................न બહાર પડી ગયેલ છે. જૈન સાહિત્યનો સંક્ષિપ્ત ઇતિહાસ સચિત્ર. ___१४ १२५६ 卐ा म卐ि . ६-०-० अ५३:-श्रीयुत मोहन सा.की. से., बसेल. जी., 3८ . प्राश भने प्रान्ति स्थान:-- શ્રી જૈન વેતાંબર કોન્ફરસ, २०. पायधुनी, भुमन. 3. क्या यात्रा करने न जावें? अधिक यात्री पहुंच कर सेवा पूजा अपने हाथों से करना आर वहां से पण्डों का अस्तित्व मिटाना उचित है ? गत पौष कृष्णा १० ता० १५-१२-३३ को वरकाना जी के मेले पर गोडवाड़ प्रान्तीय श्री संघ की कमेटी यात्रा करना बन्द न करके यह प्रस्ताव होना चाहिये कि हुई और उसमें यह निश्चय किया गया है कि जब तक यात्रा करने अवश्य जावें परन्तु वहां एक पैसा न खर्चे। श्री केशरिया जी तीर्थ का फैसला अपने हक़ में न हो जाय जो सामान चाहिये वह अन्य स्थान से ले जावें 'धुलेवा' ग्राम से भी न लें । भंडार में पैसा न दें। केशरियाजी के सब तक उस तीर्थ की यात्रार्थ न जाय और उस तीर्थ के नाम पर बोली हुई रकम किसी दूसरे नगर के मन्दिर में भंडार आदि में एक पैसा भी न दें और न भेजें तथा जमा करा दें। आपना अधिकार व हक बताने के लिय पण्डो को पैसा इनाम देकर सहायता न दें"। केशरिया जी तीर्थ पर जाकर धरना देने से तो हमारे हक गोडवाड़ी जैन भाइयों के उत्साह की प्रशंसा करते . 1 हमें मिलेंगे। विश्वासघात करने वाले पण्डों का वहां से हुए हम उनसे यह निवदन करना चाहता हैं कि इस काला मुंह होगा लेकिन याद रखिगा यात्रा बन्द करने से प्रस्ताव पर पुनः दीर्घ दृष्टि से विचार करें। तीर्थ की यात्रार्थ उलटी हानि होगी। पण्डों का जोर बढ़ेगा। रहा सहा न जावें, यह बात समझ में नहीं आती है। तीर्थाधिराज अधिकार जाता रहेगा। हम तो कहेंगे कि यात्रा बन्द रखने शत्रंजय जी और श्री केशरिया जी तीर्थ के झगडे में आकाश का प्रस्ताव पास करके आप लोगों ने भारी भूल की है। पाताल का अन्तर है। उस समय पाळीताना केश में सब जगह एक ही हथियार काम नहीं देता। मुई का काम यात्रा बन्द करने से जितना लाभ दिखता था, इस समय सूआ नहीं कर सकता। आप लोंग दीर्घ दृष्टि से विचार श्री केशरिया जी के मामले में यात्रा बन्द करना उतना करें और अपन प्रस्ताव में इतना संशोधन कर दें कि ही हानिकर है। 'यात्रा करने जावें। ऐसा करने से ही काम बनेगा। संघ विचार कर कि उस समय झगडा था 'यात्री टैक्स' का और अब झगडा है 'मन्दिर की मालिकी का' ! वह ___ अन्य नगरों के भाइयों से भी हम नम्रता पूर्वक झगडा था 'राज्य से' और यह झगडा है 'पण्डों से' इस निवेदन करते हैं कि वह झगड़े के हर एक पहलू पर इस समय यात्रा बन्द करना अपने पैरों में आप कुल्हाडी विचार करें। 'झगडा झूठा, कब्जा सच्चा' वाली कहावत मारना है। पण्डे तो कहते ही हैं कि यह तीर्थ वैष्णवों का को ध्यान में लें। भंड चाल में आकर तीर्थ की यात्रा है, रिषभदेव जी उनके छठे अवतार है. जैनियों का इसमें । हरगि बन्द न करें। कोई हक नहीं है। अब आप विचार करें कि हमको एस जवाहरलाल लोढा सम्पादक, मौके पर तीर्थ को छोड बैठना उचित है या अधिक से श्वेतांबर जैन Printed by Bhogilal Maneklal Patel at Dharma Vijaya Printing Fress, 14, Pydhoni, Bombay 3, and Published by Maneklal D. Modi for Shri Jain Swetamber Conference at 20. Pydhoni, Bombay.
SR No.536274
Book TitleJain Yug 1934
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1934
Total Pages178
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size20 MB
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