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स्त्री सुधार. इस समाज सुधार में स्त्री समाज का सुधार बड़ी सफलता से हुआ था। श्रीवीर प्रभुनें स्त्रियोंकों पुरुषों के समानाधिकारिणी होने की घोषणा किथी। जिस समय त्रियों को शास्त्र पढने का भी अधिकार नहीं था। ऐसे समय में श्री वीरप्रभुने मात्र महिलाओंका शास्त्र अध्ययन का अधिकार ही सिद्ध नहीं किया परन्तु मोक्ष प्राप्तिका भी पुरुषों के समान स्त्रियों का अधिकार है ऐसा उपदेश दिया था। स्त्री पुरुषों की इस प्रकार समा. नता का प्रतिपादन करना भगवान् महावीर सरीखे समदृष्टि के ही योग्य है।
राष्ट्र सुधार. वीर प्रभु ने केवल ज्ञानोत्पत्ति के बाद तीस वर्ष तक भारत के मगधादि अनेक देशों में विहार कर सतत् उपदेश द्वारा धर्म प्रचार किया। जिस के परिणाम स्वरुप अपूर्व राष्ट्रीय सुधार हुआ। राजा और प्रजा को धार्मिक बनाने के साथ दुराचार, लोभादि का त्याग कराकर प्रजा को सात्विक बनाया। इस लिये महावीर स्वामी के समोसरण में ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र और पशु भी धर्मोपदेश प्राप्त करते थे तथा यथायोग्य दीक्षा शिक्षादि लेकर आत्मकल्याण के मार्ग पर लग जाते थे । यही भगवान् महावीरस्वामीका राष्ट्रीय सुधार और धर्मप्रचार था.
इस प्रकार महावीर स्वामी के जीवन में धर्म, समाज, राष्ट्र अनेक प्रकार के सुधार आप को मालूम होंगे। हम सब जैन हैं । वीर भगवान की संतान और अनुयायी हैं । और वीर भगवान के जीवन से कुछ शिक्षा लेना चाहते हैं। तो मैं सानुनय निवेदन करूंगा कि आप धर्म के नाम से होनेवाले पाखण्डों को छिन्न भिन्न कर डालिये सामाजिक कुरीतियों का विनाश करके सामाजिक रक्षा में लग जाईये । स्त्री शिक्षाका प्रचार कर के अपने एक अंग को मजबूत बनाईये और राष्ट्र द्वारा एवं धर्म प्रचार के लिये यथा शक्ति समर्पण कर दीजिये । मुधारक शिरोमणि भगवान् महावीरके जीवन से हमें एसी सद्बुद्धि और साहस प्राप्त हो ।
संघ व्यवस्था. ___ भगवान् महावीर की संघ व्यवस्था एक अद्भुत वस्तु है । भगवानने प्रारंभसे ही चतुर्विध संघ की स्थापना कीथी, साधु, साधी, श्रावक, और श्राविका चारों संघों का स्वतंत्र और दृढ संघटन था और उनके नेता भी जुदे जुदे थे । इस संघ व्यवस्थाने ही आज जैन धर्म को भारत में जीता रखा है वैदिक धर्मके झपाटेमें बोद्ध धर्म आ गया और जैन धर्म बच गया इसका मुख्य श्रेय चतुर्विध संघ व्यवस्था को है । महात्मा बुद्धने प्रारंभमें श्री श्रमणी संघ की स्थापना की थी। कालांतर में एक मुख्य शिष्येक आग्रहसे श्रमण संघ की स्थापना की। परन्तु श्रावक संघ की तरफ से वह उदासीन ही रहे । भगवान महावीर ने श्रावकों और श्रमणों को परस्पर सहायक बना दिया । बौद्ध धर्म में श्रावक संघको कुछ स्थान न होने से वहां के साधु चारित्रहीन और स्वछन्दाचारी होते गये । इधर श्रावकों का संघ में कुछ स्थान न होने से वह अल्प प्रयत्न से अन्य धर्मों में चले गये परन्तु जैन समाज टिका रहा । इस का कारण है श्रावकों की मुनियों के ऊपर देखरेख तथा उनका संघ में पर्याप्त स्थान । जिससे मुनि लोग स्वच्छन्द न होने पाये । फल यह हुआ कि अनेक आक्रमण आनेपर भी साधु संस्था टिकी रही। इधर साधुओंकी देखरेख से श्रावक संघ भी टिका रहा। इस तरह एक और एक इग्यारहकी तरह इनका बल कई गुना बढ़ गया,
एक जर्मन विद्वान् ग्लासनेप जैनियो की संघ व्यवस्था के विषय में लिखते हैं "महावीरने संघकी जैसी सुदृढ़ योजनाकी उससे श्रावक संघ साधु संघ के ऊपर अनेक तरह के अधिकार भोगता चला आया है इससे अधिकार प्राप्त करने या संसारिक बातों में माथा मारने के प्रयत्न से साधुओं को दुर रहना पडता है। साधु जीवन के ऊपर संयम रखकर उच्चता सुरक्षित रखना पड़ती है। धीरे धीरे श्रावको को ऐसी सत्तामिल गई है