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श्री अर्हम्. नमो दुर रागादि-वैरिवार निवारणे ।
अर्हते योगीनाथाय महावीराय तायिने ।। बहिनो और भाईयो!
जिस श्री जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्सके चौदहवें अधिवेशनका अध्यक्षस्थान देकर आप लोगोंने मुझे गौरव प्रदान किया है वह निःसंदेह जैन समाज कि एक जीती जागती महासंस्था है। इसका मुख्य कारण है इसके बंधारणकी उदारता । इसके अधिवेशनों में सभा तरह के विचार रखनेवाले किसी भी गांव, संस्था तथा श्री संघ की तरफ से प्रतिनिधि शामिल हो कर श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन अपने विचार प्रदर्शित कर समाज हित के किसी भी प्रश्न पर सर्वानुमति से अथवा बहुमति से पास करा सकते हैं यह महासंस्था जैन समाज के जीवन को दी और प्राणप्रेरक बनाने के लिये स्थापित की गई है और अब तक अखिल भारत के श्री श्वेतांबर संघ के सहकार से उस की प्रतिनिधि बन कर अपने उद्देश की पूर्ति कर रही है।
ऐसी महासंस्था का अध्यक्षपद स्वीकार करते समय अपनी अयोग्यता पर विचार करते हुए मैं कुछ हिचकिचा रहा था अच्छा होता कि किसी वयोवृद्ध व अनुभवी सज्जन को इस महान् संस्था के अध्यक्षपद से सुशोभित करते । परन्तु आप जैसे विचारशील सज्जनों के आग्रह से अपनी योग्यता का विचार न करते हुए मैं ने इस पद को स्वीकार किया है। और एक बडी जिम्मेवारी सिरपर ली है। परन्तु जब मैं अपने चारों
ओर उच्च भावनाओं से प्रेरित आप जैसे महानुभावों को देखता हूँ तो मुझे कुछ उत्साह मिलता है और स्वीकृत जिम्मेवारी से आप सब का सहयोग प्राप्त करके कुछ सेवा करने की आशा बंधती है।
सुधारक शिरोमणी श्री महावीर प्रभु: महानुभावो-मंगलाचरणमें मैंने भगवात् महावीरको नमस्कार किया है। क्योंकि अढाई हजार वर्ष व्यतीत हो जाने परभी आज हमें उसी महापुरुष के पद चिन्हों को देख कर आगे बढना है । धार्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाना है ।
भगवान् के जीवन पर यदि आप सूक्ष्म दृष्टी स विचार करेंगे तो उस में धार्मिकता राष्ट्रीयता, समाज सुधार और विश्वकल्याणकारित्व दृष्टीगोचर होगा । वर्धमान प्रभुने धर्म का पुनरोद्धार किया जिसके परिणाम स्वरूप समाज रक्षा और देशोद्धार फलित हुए । यही कारण है कि उन के विशाल शासनमें सर्व जीवों-मनुष्यों को समान भाव से देखा जाता था । इस में कोई सन्देह नहीं कि भगवान महावीर कै पहिले भारतवर्ष में अनाचार, दम्भ, नृशंसता और अत्याचार अपने पूरे पैर पसार चूके थे । नरमेघ, गोमेघ, अश्वमेघ आदि यज्ञों में असंख्य जीवों के हत्याकाण्ड और अमानुषिक अत्याचारों को रोककर भगवान महावीरस्वामीने भारतवर्ष में अपूर्व सुधार किया था।
सामाजिक सुधार. इसी प्रकार सामाजिक अत्याचारों का निराकरण करके अपूर्व समाजसुधार भि किया था । वैदिक जमाने में अमुक वर्ग के मनुष्यों से पशु तुल्य व्यवहार किया जाता था शूद्रों की छाया पड़े जाना पापथा जातिभेद में मत्त हो कर उच्च वर्णीय कहलाने वाले, शूद्रों के साथ मन माने अत्याचार करते थे, किन्तु भगवान् महावीर स्वामीने अपने उपदेशों से सामाजिक ऊंच नीच भावों को तिलांजली देकर अपने संघ में सब को समान स्थान दिया। जिस से परस्पर बन्धुभाव, साम्यवाद फैल गया।