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________________ -जैन युग - ता. १५-२-३२ व्यौपार और उद्योग धन्धे. ३-आमदनी और खर्च का हिसाब रखना । ४-स्थानीय सर्कार की तरफसे मदद मिलना। (लेखक:-श्री अचलसिंह जैन, आगग.) ५-स्वेदेश प्रेम का होना। प्रत्येक देश की उन्नति या अवनति. उसके व्यापार का उन्नात या अवनात. उसक व्यापार ६-विद्या का प्रचार । पर निर्भर है। जो व्यापारिक परतन्त्रता से मुक्त हैं, वही नोनो आविष्का की मोर। आजाद हैं। आज संसार व्यापारिक क्षेत्र में बड़ी तेजी से गोपारिक मामि उन्नति कर रहा है और वेही देश अधिक उन्नति और शक्ति व्यापार में ईमानदारी की शाली हैं जिनका व्यौपार अन्य देशों से अधिक उन्नति पर बगैर ईमानदारी के कोई देश तरक्की नहीं पा सकता। जिस है। अगर किसी देशको गुलाम बनाना हो तो उसके व्यौपार योपाधी व्यौपार में धोखेबाजी या चाल होती है वह थोडे दिनों तक को नष्ट करदो वह स्वयं गुलाम बन जायगा। अगर किसी भले ही फलता रहे, किन्तुबाद में उसका ऐसा पतन हो जाता देश के मनुष्यों को आजाद होना हो तो, उनको अपना निवडक है कि वह किसी प्रकार उठ नहीं सकता क्यों की लोगोंका व्यापार मुधारना चाहिये। उसमें विश्वास नहीं रहता। इस लिए हरएक व्यापारी का व्यापार ही देशका आथिक स्वराज्य ह आर याद काइ यह फर्ज है कि वह अपने ब्यौपार को सचाई और इमानदारी देश आजाद है तो उसे चाहिये कि वहां की जरुरियात को से कर। प्राय देखा गया है कि हमारे यहां के व्यौपारी वरतओं को वही पैदा कर और बाहर से आनेवाले मालपर असली चीजो में खराब या नकली चीजे मिला देते है। धी इतना महसूल लगादे कि बाहर का माल वहां आकर न में चर्बी या बिनौले का तेल या अ य बहुतसी दूसरी वस्तुए बिक सके। यदि देश परतन्त्र है तो उस अवस्था में वहां मिला देते हैं। कपडे के भिल वाले थान पर लिखते है २० केनिवासियों को मुनासिब है कि वे स्वदेश प्रेम के नाते से गज पर निकलता है १८|| गज, धोती जो दस नम्बर होती अपने ही माल को खरीदें चाहे मंहगा और भद्दा ही क्यों न है पर बैठती है ८ या ९ नम्बर। इसी प्रकार नमूना हो देश के व्यौपार से देश के आदमियों को रोटी मिलती (Sample) दिखाते हैं और और कपडा आता है और है अपना पैसा कहिं में नहीं जाता और स्वदेशी उद्योग- कछ यानी यो कहना चाहिये कि बात बातमें हरएक व्यापारी गह कि व अपना कमी का थाड हा चाहता है कि वह प्राहक से एक ही दफे में जितना अधिक समय में पूरी करलें व शर्ते कि वहां के लोग उत्साही निपुरा फायदा हो सके उठाले । उपर लिखी बातों से व्यापार को और कार्य दक्ष हों। भारी धक्का पहुँचता है और अन्त में जो लोग व्यापार में प्रारम्भ में संसार के अनेक देशों में कला कौशल का सच्चे होते हैं वे तरक्की कर जाते हैं। सब जगह उनके मार्केट पूर्ण विकाश-हीं हुआ था। वर्तमान समय की उन्नति कला (Markets) खुल जाते हैं जैसे कि जर्मनी के माल की कौशल का पूर्ण विकाश नहीं हुआ था। वर्तमान समय की बाजार में कितनी धाक है और इस के विरुद्ध जापान के उन्नति पिछले डेढसो, दोसौ बर्ष में हुई है परन्तु फिर भी माल पर कोई विश्वास ही नहीं करता। इसी प्रकार यदि ' उनमें मातृभूमि का प्रेम और उत्साह था, जिससे उन्होंने हमारे यहां के व्योपारी अपनी धाक जमाना चाहते हैं, और नये नये आविष्कार निकाले और कारीगरी तथा व्यौपार को व्योपार को तरकी देना चाहते हैं तो निहायत जरूरी है कि तरक्की दी। उसका नतीजा आज यह है कि उन्होंने हर- वे जो कहे, लिखें या दिखावें, उसी के अनुसार माल होना प्रकार की उन्नति की है और वह संसार के मालिक बन चाहिए। मनुष्य अपने स्वार्थ म अन्धा हो जाता है, उस बैठ है और भारत वर्ष जो कमी सभ्यता, वैभव और मस्तिष्क समय वह अच्छे बुर का ध्यान नहीं रखता, सिर्फ यही देखता विकास में सब से आगे बढा हुआ था, आज ब्यौपार के है कि किसी प्रकार पैसा पेदा हो। जो व्यापारिक संस्थायें नष्ट हो जाने के कारण दीन हीन बना हुआ है । ब्यौपार हैं उन्हें उपरोक्त बातों पर ध्यान देना चाहिए ओर समय की तरक्की करने के लिए निम्रलिखित वातों की आवश्यकता है। समय पर जांच करते रहना चाहिए और जो माल खराव या १-ईमानदारी। नकली हो उस से जनता को सावधान करते रहना चाहिए। २-परिश्रम और धैर्य। (अनुसंधान पृष्ठ २९ में) Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Bombay and published by Harilal N. Mankar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pydhoni, Bombuys.
SR No.536272
Book TitleJain Yug 1932
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1932
Total Pages184
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size13 MB
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