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ता. १५-२-३२
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युग -
समान मे 4 4 4 नेतना या प्रदर्शनी खोलें ताकि वहां के कारीगरों को, तथा अन्य देश निसावधामा भारी पा२५६ ४३२. ससाना के कारीगरों को भी परस्पर माल का मुकाबिला करने का આપી શકે. આપણી નજર સમક્ષ દરેક સમાજના આંતરિક પ્રશ્નો પડયા છે. છિન્નભિન્નતા નજરે નિહાળીએ છીએ,
* मौका मिल जाय जिससे आपस में एक दूसरे की कमियों मेलन मेमे पथ्येनु' अत२ पटवाने पहले को पूरा करने का समय आवे तथा एक साथ बैठकर बिचार वधुतुले सारे 20 प्र १३२ विया२५॥ यो५ 2. करें कि जिससे देशके व्यौपार में उन्नति हो और उत्साह बढे ।
रेसमा पसे अनेमा -वियाना समक्ष प्रत्येक आदमी के मन में ऐसे भाव पैदा होंगे कि છે, કેટલાંક વર્તમાન પત્રો પ્રકટ થતાં રહે છે અને તે બધાંની
इस नगर के मनुष्य इतनी तरक्की कर रहे हैं, आयन्दा साल નીતિ રીતિ ચેમ થાય, વિચારે અમુક ધોરણે એ કેન્દ્રિત
में हम भी ऐसी ही तरक्की करें। इस प्रकार थोडेही समय समर रहे है. मानi लिया सभागने याम या में काफी कार्य हो सकता है। आज कल देखा जाता है कि
सवाय याम मानत पत्र प र प्रदर्शिनी बतौर एक खेल तमाशे के होती हैं. लोग आते हैं છે. કોન્ફરન્સની અખિલ હિંદ સ્થાયી સમિતિની છેલ્લી
और सिर्फ देख कर चले जाते हैं, इससे कोई लाभ नहीं। બેઠકના પ્રમુખસ્થાનેથી દર્શાવાએલા વિચારો પત્રકારોએ જરૂર ધ્યાનમાં લેવા જેવા છે એમ લાગ્યા વિના રહે તેમ નથી.
देखने बालों को विचारना चाहिये कि जो चीजें उन्होंने 21 दिशाम पत्र। योस प्रयास ४३ नो मनी प्रतिभा देखी हैं उनमें क्या २ कमी है, और वह कमी किस प्रकार આદરણીય થઈ પડે
पूरी हो सकती है ! तथा क्या २ नये सामान या मशीन बनाई विभस जा सकती है ! व्यापारिक संस्थाओं को अच्छे २ इनाम देकर
निपुण कारीगरों व लोगों को उत्साहित करना चाहिये। (अनुसंधान पृष्ट ३० से चालु)
जिससे वे आपना दिमाग लडाकर नये २ सामान तैयार करें। हमारे देश के व्यापार की उन्नति न होने का एक
इस प्रकार हरएक देश भी अपनी उन्नति कर सकता है। और कारण है और वह यह कि हम लोगों में नई नई बातें सोचने और नये नये तरीकों को इस्तैमाल करने का माद्दा बहुत कम है। जो मशीन २५ वर्ष पहले थी, वह आज भी श्री शौरीपुर तीर्थ केस. उसी हालतमें हैं, कारिगर लोग तरक्की करने की कोशीश
यह केस श्वेतांबर और दिगंबरों के बीच बहुत दिनों से नहीं करते हैं। इसके मुख्य दो कारण मालूम होते हैं कि
हात ह कि चल रहा है. बीच में आपस में निपटारा करने के प्रयास पहले तो कारीगरों में विद्या नहीं है, दूसर उनमें उत्साह का निष्फल गये. मकदमेबाजी दिन ब दिन आगे बढती जाती है. बिल्कल अभाव है। इसके अलावा जो खरीदार होते हैं, वे चालक सस्ती चीज चाहते है, अच्छी चीजों की जोरदार मांगही नहीं होती। इसका परिणाम यह होता है कि जो चीज या मशीन २५ वर्ष पहले जिस हालत में थी, आज भी उसी
बंबई म्युनिसिपालिटी की वार्षिक चुंटणी मे ८६ हालत में है। इसकारण व्योपारिक संस्थाओं को इस ओर जगह के लिए १२१ उमेदवार थे. कुछ स्त्रीयां भी थी. तीन ध्यान देना चाहिये और कारीगरों को उत्साहीत करना जैन भी चुटे गए है। चाहिये और नये २ आविष्कारों के निकालने के लिये योगcreeneremineneechecces करना चाहिये।
નીચેનાં પુસ્તકે વેચાતાં મળશે. . जो देश स्वतंत्र हो हैं वे तो धरकी तिजारत या श्री न्यायावतार
३. १-८-०१ कारीगरों को तरक्की देने के ख्याल से बाहर से आने वाले माल है।
३. ०-८-०
છે જેન ડીરેકટરી ભાગ ૧-૨ ३. १-०-० पर इतना ज्यादा कर लगा देते हैं कि बाहर का माल वहां
જેન વેતામ્બર મદિરાવળી ३. ०-१२-० बिकही नहीं सकता और जो देश गुलाम हैं उनको तो एक अथावणी
३. १-८-० मात्र यही उपाय है कि स्वदेशप्रेम पैदा करें और अपने घर न २ विमा (. In) ३. ५-०-० की वस्तुओं के अलावा अन्य सामान न खरीदे, तथा आपस , " " " n in ३. 3-0-02 में मिल कर नये २ आविष्कारों द्वारा देश की उन्नति करें। समा:-श्री जैन तास.
२०, पायधुनी, 2. व्यौपारिक संस्थाओं को चाहिये कि हर स्थान पर
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