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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राजाऽपि तद्द्द्वियोगार्तः स्मृत्वा शापं स्वकर्मजम् । शरीरत्यागमात्रेण शुद्धिलाभम् अमन्यत ॥ रघुवंशम् (१२ - १० ) "राजा दशरथ यद्यपि राम के वियोग से दुःखी हुए, किन्तु अपने किये हुए कर्मों के फल स्वरूप प्राप्त हुए शाप को याद करके, यह निश्चय बना लेते हैं कि अब मुझे शरीर छोड़कर ही ( शाप से) शुद्धि प्राप्त करनी होगी ।" मनुष्य को अपने जीवन की अन्तिम क्षणों में, पुत्रादिका मोह छोड़कर, अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। एक उदात्त व्यक्ति को शोभा देनेवाली ऐसी विचारधारा वाले दशरथ को दिखाकर महाकवि ने अपने रघुवंशी राजाओं के चरित का सातत्य बनाये रखा है । "वाद्धके मुनिवृत्तीनाम्" और "योगेनान्ते तनुत्यजाम्" वाले जिस आदर्श राजवंश का वर्णन करने के लिए महाकवि उद्यत हुए हैं, वे एक स्त्रीपरवश पति तथा पुत्रमोहग्रस्त पिता का निरूपण नहीं कर सकते हैं। अतः आदिकवि से अलग होकर महाकवि कालिदास को ऐसे एक धीरोदात्त दशरथ का 'दर्शन' कराना जरूरी था । I (५) लक्ष्मण के द्वारा शूर्पणखा के नाक-कान काटे गये। वह खर-दूषणादि के पास जाकर, राम के विरुद्ध सभी राक्षसों को उकसाती है, जिसके कारण हजारों की संख्या में राक्षस राम के उपर आक्रमण कर देते हैं। राम सीताजी की रक्षा के लिए लक्ष्मण को नियुक्त करके, अकेले ही युद्ध के लिए सोत्साह संनद्ध हो जाते हैं। अब वाचक को प्रश्न होगा कि अकेले राम कैसे हजारों राक्षसों के सामने लडे होंगे ? कवि अतीत में एवं परोक्ष में लड़े गये युद्ध की झलक अपने प्रातिभ चक्षु से देख लेते हैं; और उसका वर्णन करते हुए लिखते हैं कि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एको दाशरथिः कामं यातुधानाः सहस्रशः । ते तु यावन्त एवाजौ तावद्धा ददृशे स तैः ॥ - रघुवंशम् (१२-४५) राम का वनप्रवेश एवं महाकवि का परकायाप्रवेश " दाशरथि राम तो निश्चित् ही अकेले थे, और सामने यातुधानों हजारों की संख्या में थे । फिर भी रणसंग्राम में जितने राक्षसलोग दिखाई दे रहे थे, उतने ही राम भी दिखाई देते थे ।" I कवि का कहने का तात्पर्य ऐसा है कि राम तो दाशरथि थे एक मानवपुत्र थे वह कोई यातुधान (जादु करनेवाले, अर्थात् मायावी) नहीं थे; मायावी तो वे राक्षसलोग थे । फिर भी राम हजारों की संख्या में कैसे दिखाई दे रहे थे ? तो युद्ध के दौरान राम शीघ्रातिशीघ्र गति से, यहाँ से वहाँ से ऐसे दौड़ते रहते थे कि वह एक होते हुए भी अनेक दिखाई दे रहे थे । इस तरह कवि ने अपने प्रातिभचक्षु से राम का जो साक्षात्कार किया होगा, उसका वर्णन हमें पाठक को अपने वर्तमान स्थल-काल से बाहर निकाल के, तत्कालीन युद्धभूमि पर ले चलते हैं। महाकवि कालिदास का यह महावीर राम में 'पराकायाप्रवेश' है ! For Private and Personal Use Only - - ૧૭
SR No.535841
Book TitleSamipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Mehta, R T Savalia
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year2006
Total Pages110
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size9 MB
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