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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवि में ऐसी शक्ति होने पर ही अतीत के पात्रों का चरित्रचित्रण पाठकों के लिए प्रतीतिकर हो सकता है । रघुवंश के द्वादश सर्ग से कुछ उदाहरण लेकर, अब उपर्युक्त विचार का समर्थन किया जायेगा । महाकवि ने द्वादश-सर्ग के प्रारम्भ में, राम के राज्याभिषेक का निरूपण किया है । कोपभवन में प्रविष्ट हुई कैकेयी की दुःखदायिनी भूमिका, जो मूल में बड़े विस्तार से आदिकवि ने वर्णित की है, उसको महाकवि ने यहाँ एक ही श्लोक में प्रस्तुत किया है : तस्याभिषेकसंभारं कल्पितं क्रूरनिश्चया । दूषयामास कैकेयी, शोकोष्णैः पार्थिवाश्रुभिः ॥ रघुवंशम् (१२-४) यहाँ पर, कैकेयी के मनोगत भावों को अपने प्रातिभ-चक्षु से साक्षात् करते हुए महाकवि ने केवल एक ही शब्द में कहा है। कैकेयी राम के राज्याभिषेक के समय पर क्या थी, जिसके परिणाम स्वरूप राम का दण्डकारण्य में प्रवेश हुआ - इसको कहने के लिए - क्रूरनिश्चया - यह शब्द सर्वथा यथार्थ है । दूसरी ओर, जो बात मूल रामायण में नहीं है, वह महाकवि ने साक्षात् की है :- राम, सीता और लक्ष्मण वन की ओर प्रस्थान करते हैं, तब कैकेयी सीता को वन में जाने से रोकती है। किन्तु सीताजी कैकेयी के प्रस्ताव को स्वीकारती नहीं हैं : बभौ तमनुगच्छन्ती विदेहाधिपतेः सुता । प्रतिषिद्धापि कैकेय्या लक्ष्मीरिव गुणोन्मुखी ॥ - रघुवंशम् (१२-२६) "विदेहाधिपति की पुत्री (सीता) कैकेयी के द्वारा वनगमन से रोकी जाती है, फिर भी गुणोन्मुखी लक्ष्मी की तरह वह सीता राम का (ही) अनुगमन करती हुई सुशोभित हुई ॥" यहाँ पर महाकवि ने "क्रूरनिश्चया" कह कर जिस कैकेयी का पूर्वपरिचय दे रखा है, वह जब सीता को वनगमन से रोकती है, उसमें भी कुछ पाप छीपा होगा - ऐसे एक दर्शन की ओर कविने इङ्गित किया है । महाकवि इस बात की ओर अङ्गलिनिर्देश करते हैं कि कैकेयी सीताजी को वनगमन से रोक कर निर्वासित राजकुमार की पत्नी को नये राजा भरत की पत्नी बनाना भी सोच रही थी । परन्तु सीताजी इसी क्षण पर राजमहल के सुख ठुकराकर या कैकेयी की कुमति को ठीक तरह से पहचानकर राम का अनुगमन करना पसंद करती हैं । मूल रामायण में कैकेयी ने प्रसिद्ध दो वरदान माँग कर संतोष जताया है, परन्तु महाकवि कालिदास ने तो कैकेयी के मन में छीपे हुए एक दारुण - भयङ्कर दूरित को भी आविष्कृत किया है, ध्वनित किया है ॥ मूल रामायण में दशरथ पुत्रमोहग्रस्त पिता एवं स्त्रीपरवश पति के रूप में दिखाई पड़ते हैं । परन्तु कालिदास ने दशरथ की मौत का निरूपण करते समय एक धीरोदात्त रघुवंशी राजा को शोभा देनेवाला व्यक्ति ही बताया है। १६ सामीप्य : ओटो. २००६ -- भार्थ, २००७ For Private and Personal Use Only
SR No.535841
Book TitleSamipya 2006 Vol 23 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Mehta, R T Savalia
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year2006
Total Pages110
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size9 MB
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