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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैसा कि यहां पीछे कहा जा चुका है कि मोटवणिक ज्ञाति भी मोढेरा से ही अस्तित्त्व में आयी । वि. सं. की १९ वीं शती के प्रारम्भ से वि. सं. की १७ वीं तक के कई शिलालेखों और ग्रन्थों की दाताप्रशस्तियों में इस ज्ञाति का उल्लेख है, जिससे ज्ञात होता है कि इस ज्ञाति के श्रावक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के विभिन्न गच्छों में बंटे हुए थे । १६ वीं शती में श्रीमद् वल्लभाचार्य के प्रभाव से अनेक मोढ परिवारों ने वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया । १७ वीं शती में वेताम्बर आम्नाय में लोकाशाह का उदय हुआ, इनके द्वारा उद्भूत लोकांगच्छ से निकले अमूर्तिपूजक स्थानकवासी सम्प्रदाय में भी अनेक मोढ परिवार दीक्षित हो गये । आज भी पश्चिमी भारत और मध्यभारत में हजारों मोढ परिवार विद्यमान हैं जो वैष्णव और स्थानकवासी परम्परा से सम्बद्ध हैं । २५ मोढ ज्ञाति द्वारा अपने परम्परागत धर्म के परिवर्तन के परिणामस्वरूप न केवल मोढचैश्य और मोढगच्छ बल्कि श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय भी समाप्त हो गया । पाटीप 3. Sarabhai Manilal Navab, The Jaina Tirthas in India and Their Architecture, Ahmedabad, 1944, p. 28 २. Umakant P. Shah, Akota Bronzes, Bombay, 1959, p. 60 ३. पूरनचन्द नाहर, जैनलेखसंग्रह, भाग २, कलकत्ता, १९२७ लेखांक १६९४ ४. C. D. Dalal, A Descriptive Catalogue of Mss in the Jaina Bhandars at Oriental Institute, Vol. I, Baroda, 1937 A. D., p. 201 ५. मुनि जिनविजय (संपा.), प्रभावकचरित, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक - १३, अहमदाबाद - कलकत्ता, १९४०, पृ. ८० ६. M. A. Dhaky, "Modhera, Modha-Vamśa, Modha - Gaccha and Modha Caityas" Journal of the Asiatic Society of Bombay, Vol. 56-59 / 1981-84, New Series, Bombay, 1986, pp. 153-154 For Private and Personal Use Only Pattan 9. Ibid., 150-152 ८. दलाल, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५६-५७. ९. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५२ १०. प्रभावकचरित, पृष्ठ ८०-८१ ११. मुनि जिनविजय संपा०, पुरातनप्रबन्धसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, १९३६, ई०, पृष्ठ ८३ १२. ढांकी, पूर्वोक्त, पृष्ठ १५२ १३. प्रभावकरचित, पृष्ठ ८० १४. विधिपञ्चगच्छस्य पंचप्रतिक्रमण सूत्राणि [वि. सं. १९८४ ] के अन्तर्गत प्रकाशित. १५. मुनि जिनविजय- (संपा.), खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली, सिंघो जैन ग्रन्थमाला - ग्रन्थांक ४२, बम्बई, १९५६, पृष्ठ ६३ और ७९ मोदगच्छ और मोढचैस्य ] ग्रन्थांक २, कलकत्ता, [127
SR No.535779
Book TitleSamipya 1991 Vol 08 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra C Parikh, Bhartiben Shelat
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year1991
Total Pages134
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size80 MB
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