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सिक्का होने के कारण इसका किनारा बिन्दुओं और रेखाओं से अलंकृत है । १०० कोरी -
धातु : सोना, आकार : गोल, तौलः १८.७०० ग्रा. अग्रभाग तो ५० कोरी के ही समान है।
पृष्ठभाग - बाह्य वर्तुलमें 'महाराउश्री प्रागमलजी बहादुर महाराजाधिराज मिरजा' लेख है । मध्य वर्तुल मे प्रथम पंक्ति में तो सामान्य तीन चिह्न ही हैं। उसके नीचे की पंक्ति में मो । ) कोरी १०० । तृतीय पंक्ति में ........ जरब 'क' और चौथी पंक्ति में छ भुज १९२३ अंकित किया गया है ।
इस प्रकार की १०० कोरी केवल १९२२ और १९२३ वि.सं. में ही ढाला गई थी। इसके किनारे महीन लम्बवत् रेखाओं से अलंकृत हैं। . कच्छ के राव प्रागमलजी की कोरी की विशेषताओं पर ध्यान देने से स्पष्ट है कि सभी कोरियों का
आकार तो गोल ही होता था। तौल २.३५००, ४.७०००, ६.९३५०, ४. ६७५०, ९. ३५०० तथा १८. ७००० तक है । १/२ कोरी, कोरी और २५ कोरी में लेख लिखने की पद्धति एक समान है। इनके किनारों पर भी अलंकरण का अभाव है । जब कि २ १/२, ५, ५०, १०० कोरी में समानता है। अग्रभाग तथा पृष्ठभाग दोनो में ही लेख लिखने की समान पद्धति का प्रयोग हुआ हैं । २ १/२ कोरी और ५ कोरी में अग्रभाग के वर्तुलाकार बेल को कलाकारी भी एक जैसी है । ५० कोरी तथा १०० कोरी की अलग है । इसी प्रकार सिक्के के मूल्य को भी प्रथम बार दर्शाया गया है। २५ कोरी तो सोने का सिक्का था, किन्तु फिर भी इसमें सिक्के के मूल्य को दर्शाने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया है । लेख में प्रागमलजी के लिए बहादूर, महाराजाधिराज, मिरजा, महाराउ आदि उपाधियों का प्रयोग हुआ है । कोरी के द्वितीय प्रकार में त्रिशूल अर्धचन्द्र
और खड्ग में से केवल अर्धचन्द्र का ही अंकन है तथा बहादूर के बाद दाहिनी तरफ अंकित फूल भी एक विशिष्टता है । .
ऐसे देखा जाए तो कच्छ के राव भारमलजी १ ने ई.स. १९१० में सर्वप्रथम जहांगीरी कोरी का प्रचलन करवाया था और राव प्रागमलजी के बाद भी राव मदनसिंहजी के समय तक कोरी ढलती रही, किन्तु प्रागमलजी ही कच्छ के प्रथम शासक थे, जिन्होंने महारानी विक्टोरिया को सम्मान देते हुए सिक्के प्रचलित करवाये । इन्होंने इसका प्रचलन अपने राज्यकाल के प्रथम वर्ष अर्थात् १८६० ई.सन् से ही प्रारंभ कर दिया था । १८६० ई.सन् मे प्रचलित त्रांबियों और कोरी दोनो में ही मुघल शैली का अनुकरण तो किया गया है और साथ ही साथ महारानी विक्टोरिया Mighty qucen अंकित है । स्वयं के लिए उन्होने 'राव' अथवा 'महाराव' उपाधि का ही प्रयोग किया है । इस दृष्टि से राव प्रागमलजी द्वारा प्रचलित कोरी कच्छ की कोरी में एक विशिष्ट स्थान रखती है । सन्दर्भ ग्रन्थ :1. Standard Catatlogue of World Coins, Vol. III (1986 Edi) - Chesta L. Krausc
and Chifford Mishler, 2. Cutch : It's Coins and Heritage - V.K.Thacker. 3. Coins - P. L. Gupta. 4. Coins of Native States - John Allan । 5. भारतीय सिशाख - प्र.वि.परीप माने.शास्त्री. 6. गुरातन सिओ न. मा. मायार्य 7. ४५७ : संस्कृतिनो १५:1 भौगोलि परिप्रेक्ष्यमा - नाममा मट्टी.
પથિક દીપોત્સવાંક-૧૯૯૭ ૦ ૪૫
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