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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Rey, No. G 50 क्रोध म करिज्यो कोइ प्राणीया रे, क्रोधइ दुरगति थाय रे / तप जप जे करइ दुकरु रे, क्रोधइ सहूयइ जाय रे // 4 क्रो० आप तप परतापवइ रे, न गुणइ माय न बाप रे / सज्जन-न दुजन करइ रे, वली वषाणइ आपो आप रे // 5 क्रो० कोष थकी दुष पामीयइ रे, जेहनत अंत न पार रे / कुंडरीक तणी. परइ रे, सातमी नरक अपार रे॥ 6 क्रोध करी बारम चकी रे, बांभग काढी आँखि रे। नरग तणा दुख भोगवइ रे, ए सिद्धांतनी साख रे // . बच्चंकारी सेठ धू रे, कीधर क्रोध अलेष रे। पचर कूलई भोगव्या रे, दुष आपद बहु देष रे / / 8 कूल बालूयइ साधुजी, क्रोध कीयठ सुविख्यात रे। श्रेणिक सुत कोणि(क) नृपइ रे, छट्ठी लहीय असात रे // 9 मीन नेत्र मइ गर्भ जरे, तंदुल मछ इणि नाम रे / मन परिनाम महावुरा रे, क्रोवइ सातमी. ठाम रे // 10 इम अनेक नर नारीयइ रे, पाम्यड दुष असमान रे। मेतारज मुनि नीपरह रे, करउ क्षमा सुप्रधान रे / / 11 गयसुकमाल मुणीसरइ रे, करीय क्षमा रस पूर रे / कृह गयूड क्षमा लगी रे, कर्म कीया चकचूर रे // 12 बामणि भव सुत देषि नइ रे, सकोसलउ मुंगिय रे / पसम रस जिन संचीपड रे, तिणि प्रगटउ मुगति नरिंद रे / / 13 को. अवंती सुकमाळजी रे, पूरव भवत्री जाण रे / जंब की पति आमिष भषहरे, पामइ गुलणी विमाण रे // 14 क्रो० इम विष्टत अनेक छइ रे, कहितां नावइ पार रे। संभलि-नइ भवीयण सदा रे, प्रहउ क्षमा रस सार रे // 15 क्रोध सजड उपसम धरत रे, कूडा मकरउ विवाद रे / त्रिने अवगुण उपजइ रे, तिणि केराउ सबाद रे / / 16 को० पणुं किसं ते भाषीयइ रे, क्रोधथी नरगनो ठाम रे। उपसम मन नितु आणीयइ रे, जिमलहीयइ सिव गांम रे // 17 को सीष सुणीए रूबड़ी रे, हृदय धरठ सुविचार रे। पुण्यतिलक गुरू सांनिधइ रे, विद्याकीरति सुषकार रे / / 18 क्रो० विद्याकीर्ति की रचनाओं का प्रचार अधिक दूसरी प्रति मिल जाय तो मुझे सूचित करने नहीं हुआ, इसलिये कषाय संधि की दूसरी का अनुरोध करता हूं। धर्म बुद्धि चोपई के प्रति मिलना कठिन ही लगता है फिर भी दूसरे खण्ड के अवशेष अंश की भी खोज यदि किसी को इस प्रति का अंतिम पत्र या की जानी बावश्यक है। પ્રકારાક : દીપચંદ જીવણલાલ શાહ, શ્રી જૈન ધર્મ પ્રસારક સભા-ભાવનગર "મમ : ગીરધરલાલ કલચંદ શાહ, સાધના મઝાલય-ભાવનગર For Private And Personal Use Only
SR No.533948
Book TitleJain Dharm Prakash 1965 Pustak 081 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1965
Total Pages16
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size6 MB
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