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मरुदेवी - मोहविलसित ।
मरुदेवीजी बैठे गज पर निज सुतके दिलसे करें दर्शन बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ १२ ॥ समवसरण के निकट सामने दुंदुभि नाद सुने माताने
देवी देवन के कोलाहल कर्णविवर के करते रंजन बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन १ ॥ १३ ॥ माता पूछे भरत पौत्र से किस का वैभव सुना कर्ण से
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पिता ऋषभ जितराज विराजे तीन भुवन के पूजित राजन् 'बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन १ ॥ १४ ॥ रोते रोते दिन कई बीते दुखिनी भई मैं जीवन खोते
मेरा कोई स्मरण न उसको नवल जगत का ऐसा गुंजन बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन १ ।। १५ ।। देखूं मै नयनों से वैभव अंघ भई मैं कैसे संभव १
सब देवन का देव ऋषभ मम साधु हृदय का मंत्र हि गुंजन
बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ १६ ॥ आनंदाश्रू चले वेग से
पटल गले सब दिव्य नयन से
दर्शन साक्षात् परब्रह्म का आत्मविकासक जिन नयनांजन
बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन १ ॥ १७ ॥ कौन ऋषभ मरुमात कोन है ?
भास भ्रमात्मक जगत भ्रांति है
निज निज कर्म विवश जीवन सब कर्मधर्म का जग है भाजन
बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ १८ ॥ कर्म गले मरुमाताजी के
प्रगट उजाला दिव्य आत्म से
लोकालोकप्रकाशक केवलज्ञान भया भास्करसम अनुपम बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहां है मेरा जीवन ? ॥ १९ ॥ शीघ्र गति दिव्यांबर गाजे मुक्तिपुरी मरुदेवी बिराजे
मरुदेवी मन विलसित गाते 'बालेन्दु ' आत्मा का रंजन बोलो कोई बतलावोजी ऋषभ कहाँ है मेरा जीवन १ ॥ २० ॥
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