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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ ३-४ ] जैन योगीराज आनंदघनजी के दो महत्त्वपूर्ण उल्लेख ८१. इसी प्रकार श्रीमद् आनंदघनजी के पदों पर ज्ञानसारने बालावबोध लिखा था जिनमें १३ पर्दों का ही हमें उपलब्ध हुआ उसे हम ज्ञानसार प्रन्थावलि में छपा चुके हैं और वह शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाला है । इस शती में श्री मोतीचंद गिरधर कापडिया एवं बुद्धिसागरसूरिजी का समस्त पदों का पूरा विवेचन प्रकाशित हो ही चुका है । इसमें कापडियाजी के विवेचन का प्रथम भाग बहुत वर्षों पूर्व छपा था । उसके बाद का भाग जैनधर्म प्रकाश में कई वर्षों तक निकलता रहा जो संभवतः ग्रन्थ के रूप में अब छप रहा है । गोविंदजी मूलजी महेयानी के रजिस्टर में हमें ३४ पदों का विवेचन स्व. देशाई के संग्रह से मिला है । - इतना सब होने पर भी आनंदघन के जीवनचरित्र के सम्बन्ध में निश्चित रूप से हमें बहुत ही कम ज्ञात है। कई वर्षों से मेरे हृदय में यह बात विशेष रूप से खटक रही थी कि उनके समकालीन व्यक्तियों में से किसीने मी उनका कहीं नामोल्लेख तक नहीं किया यह बहुत ही आश्चर्य की बात है । मानव स्वभाव की यह कमजोरी तो सदा से रही है कि विद्यमान पुरुष को वह उतना महत्व नहीं देता जितना उसके स्वर्गवासी होने के बाद दिया जाता है। इसी कारण विशेषरूप से तो समकालीन उल्लेख नहीं भी मिले, क्योंकि एसे संत पुरुष एकान्त गुप्त रहेना ही अधिक पसंद करते हैं, एवं प्रसिद्धि में आना नहीं चाहते । साधारण व्यक्तियों को उनका महत्त्व विदित नहीं होता और विद्वान् अपने अहं के कारण उचित मूल्यांकन नहीं करपाते । फिर भी श्रीमद् का कुछ कुछ तो कहीं उल्लेख मिलना ही चाहिये। कहा जाता है कि उपाध्यायाय यशोविजयजी उनसे मिले थे और उनकी स्तुतिरूप अष्टपदी की रचना की थी पर ईस रचना से इसकी स्पष्टता नहीं होती, आभास मात्र ही मिलता है, जो अन्य कारण से भी संभव है। पं. प्रभुदासजी ने भी अष्टपदी से यशोविजयजी के आनंदघन का मिलन सिद्ध न होने का भाव प्रगट किया है । यथा " श्री उपाध्यायजी महाराज जेवाने तेमना तरफ मान होय अने एवा समर्थ * पदों में काफी सेलमेल हुआ है। इसके सम्बन्ध में हमारे कई लेख श्री वीरवाणी, संतवाणी पत्रो में प्रकाशित हो चुके हैं। श्री दिपचंदजी रचित १५६ का बालावबोध भी मैंने वीरवाणी में प्रकाशित कर दिया है । For Private And Personal Use Only
SR No.533810
Book TitleJain Dharm Prakash 1952 Pustak 068 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1952
Total Pages35
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size14 MB
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