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ચરચાપત્ર,
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चेतनरुप निमित्तद्वारा प्राप्त होता है जैनमतमें जो ऐसा माना है सो सत्य है क्योंकि ईश्वरको कर्मफलका देनेवाला मानिये तो ईश्वर निःकलंक सिद्ध नहीं होता है. इसकथनकों सूक्ष्मबुद्धिसे विचारना चाहिये नतु स्थूलवुद्धिसें और जो तुमारे मनमें न्यायांभोनिद्धि शब्दके वांचनेसें दुःख उत्पन्न होता होवे तो तुमने पूर्वोक्त शब्द नही वांचना इससे तुमको दुःख नही उत्पन्न होवेगा. यह पूर्वोक्त शब्द भक्त जनोने भाक्त वश होकर लिखा है परं ग्रंथकाने नहीं लिखा है और विना स्वकृत कर्मके और कर्मफल भोगनेके निमित्त विना अन्य किसी वस्तुका अवलंबन जैनमति नहीं करते है. - २–कर्मके फलभोगनेमें कालभी एक निमित्त है क्योंकि जैनमतके शास्त्रोमें लिखा है कि शुभ कालके निमित्तसें अशुभ कर्मका उदय नही होता है उस्ते मुहुर्तादि शुभ कालरूप निमित्त आवश्य देखना चाहिये. ... ३-भूगोलका स्वरूप जैसे जैनमतमें माना है तैसेही सर्व जैनमतवाले मानते है क्योंकि शत्रुजय महात्म ग्रंथमें लिखा है कि समुद्रके पानीसें बहुत देश डूब गए है इस वास्ते भरतक्षेत्रका स्वरूप हम यथार्थ नहीं बतला सक्ते है और शास्त्रकार तो जो सनातन कथन है तैसाही कथन करते है परंतु जैसें कोह अज्ञबेरजेकी पोटलीको अपनी बुद्धिकी कल्पनासे बरास बनाया चाहता है तैसे शुद्ध जैनमती अपनी कल्पनासें जैनमतके शास्त्रोंके अर्थ फेर के नवीन स्वकपोल कल्पित अर्थाभास नहीं कर सक्ते है और जो अपने मनमानी वर्तमान अंग्रेजोके कथनानुसार भूगोल के सदृश अपने शास्त्रोंके अर्थ रचके अपने माने शास्त्रोंकी सत्यता प्रगट करते है वे अपनेही शास्त्रकों कपोल कल्पितसिद्ध करते है क्योंकि ज्योतिष शास्त्रमा ।
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