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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org KOCIOKOKOOKCO पूर्णता की खोज ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ Xx सुखी, समृद्ध और लक्की मेन गिना जाने वाला आज का प्रत्येक व्यक्ति आपने आप में कुछ कभी महसूस करता है, उसे यह दिक्षा लगता है कि यह भीतर से कुछ खाली है । सफलता और समृद्धि के शिखर पर रहने वाला आज का हर आदमी अपने आपको अपूर्ण अनुभव करता है । आखिर ऐसा क्यों हो रहा हैं जिसके पास सब कुल है वह भी अपने आपको अधूरा क्यों महसूस कर रहा है । कुछ न कुछ महत्वपूर्ण छूट जाने की उसकी भीतर की पुकार हैं । वह पुकार क्या है, वह अपूर्णता, वह कमी और अब अधूरापन क्या हैं। जिसका व्यक्ति हरपल अनुभव करता है। गरीब, भी, मध्यम भी और अमीर भी । आदमी स्वयं इस बात को समझ नहीं पाता है कि मेरे मन कर हृदय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनि नवीनचन्द्र विजय अधूरापन क्यों महसूस करते हैं । और यह अधूरापन कैसे भरा जा सकता है। अपने भीतरी अपन को मनोरंजन के विदेश भ्रमण से तीथी यात्रा से भरना चाहते हैं । वे इसके लिये पैसे भी ख करते हैं किर भी वे अपने इस भीतरो अधूरेपन को भर नहीं पाते। वे प्यासे के प्यासे ही रहते हैं 1 यह मनुष्य मात्र की करुणा हैं कि वह वास्तव में है। उसकी आत्मा मन, बुद्धि और हृदय आदि सब कुछ अपूर्ण है । उसकी आत्मा जी हम समय अपूर्ण बनी हुई है. पूर्णता शाह करना चाहती है । अखंड और परिपूर्ण होना चाहती है | समृद्धि और सफलता के शिखर पर पहुंच जाने से आत्मा की पूर्णता नहीं आती, मनोरंजन से आत्मा का रंजन नहीं होता. विध की परिक्रमा For Private And Personal Use Only
SR No.532029
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 093 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1995
Total Pages27
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size4 MB
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