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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આમાનદ પ્રશ करने से आत्मा की परिक्रमा नहीं होती। कब होगे ? मैं तो उसके बिना तत्प तीर्थ यात्रा से आत्मा की यात्रा नहीं रहा हु । मुझसे उसका वियोग सहा होती भगवान के दर्शन से आत्मा के नहीं जा रहा हैं । मेरे आंसू की एक दर्शन नहीं होते प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक बृद उन्हें समर्पित हैं। मैं उसके आत्मा है और प्रत्येक आत्म हरिपूर्ण बिना अब एक क्षण भी रह नहीं सकता। होना चाहता है, पूर्णता उसका स्वभाव फूल की पीडा बढती जाती हैं और है । इसलिये वह अपने स्वभाव में आना बह करण स्वर से पुकार उठता है ओ चाहता है। आत्मा अनंतज्ञान युक्त मेरे प्राण ! ओ मेरे स्वामी ! ओ मेरे तन्य स्वरूप है. वह अपने स्वरूप में परमात्मा ! मैं तुम्हें ढूंढ कर थक गया जाना चाहता है इसलिये वह एक प्रकार हूँ । आखिरकार ओ देव ! तुम कहां की अपूर्णता अनुभव करता है। आदमी हो । तब फल ने फूल को मुस्कराते हुये अपने जीवन में आत्मा की परिपूर्णता अपना पता बताया-प्यारे फूल ! तु के लिये कोई प्रयत्न नहीं करता इसलिये मुझे क्यों बाहर हूँढ रहे हो, बाहर में उसे अपने जीवन में बसंतोष रहता है। कहीं नहीं हूँ। तुम जहा ध्यान से ____एक दिन फूलने आतभाव से पुकारा देखो ! मैं तो तुम्हारे भीतर ही छिपा "मेरे ग्रा, फल, हम कहां हो पल में हुआ हूँ । जो चीज तुम्हारे भीतर हे भाभिमत उत्तर दिया- नहीं जानते. उसे बहार खोजने की मूर्खता कयों ? तुम्हारे ही अन्दर में छिपा बैठा हूँ। भार का प्रत्येक मनुष्य फूल जैसी रवीन्द्रनाथ टेगौर का यह रूपक एक खता कर रहा है। वह पूर्णता को बहुत बडे सत्य को उदाहिर करते हैं। बाहर खोज रहा है कोई छत में खोज एक बार कल को जिज्ञासा हुई कि रहा है कोई घर और दुकानमें खोज मेरा प्राण तो कल है. वही मेरा स्वामी दहा है ।काई वासना का लाल में खाज और भगवान हैं। लेकिन वह मझे कही रहा है। कोई शरीर के सौन्दर्य में। पर दिखाई भी देता. मेरे प्रण होने पर उसे पता नहीं है कि जिस पूर्णता को भी वे अझसे अद्वार हैं. मेरे भासान वह बाहर खाज रहा है. पह तो उसके होने पर भी मुझे दिखाई नहीं देते भीतर हे । आखिर वह नो हैं 'कहां ? मैं उसे यदि हम तीर्थयात्रा करते हुए आत्मा कहां है? मुझे मेरे साथी के दर्शन को यात्रा करते हे, संत महात्माओ जो For Private And Personal Use Only
SR No.532029
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 093 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1995
Total Pages27
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size4 MB
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