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આત્માનઃ પ્રકાશ
भैस चरानेका काम करने लगा।
तो घर का काम करने लगी और शिवदेव गाय दो बड़े दिये। फिर माताने सब तरह के सामान से भरी एक थाली अपने लडके को दी। मुनिने उसमें से कवल मात्र लिया। तत्पश्चात् मुनि अपने स्थान पर चले गये । वहां पर उस समय पांच कन्याएं भी थीं, उन्होंने उस दान की अनुमोदना की ।
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शिवदेवने एक महातपस्वी मुनिको देखा। उसने बहुमान पूर्वक तपस्वी मुनिको वदन किया । फिर वह मनमें विचार करने लगा, 'यदि यह सुनि मेरे घर पारणा करें तो कितना सुन्दर हो। पता नहीं, मेरे भाग्य में इस मुनि का पारणा है या कि नहीं ?" फिर माघ मास की पूर्णिमा के दिन वह मुनि शिवदेव के घर में पारणे के निमित्त आया । पहले शिवदेवने वीर बोहराई, फिर मुनि को
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मरणोपरान्त शिवदेव जीव देवका पुत्र मैं ( जिनदत्त) हुआ। सुपात्रदान की अनुमोदना करनेवाली पांच कन्याए मेरी पांचो धर्मपत्नियां 'बी' | यशोमती मेरी माता बनी ।