________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
આત્માનંદ પ્રકાશ
की आंखों में आंसू आ गये और वह सोचने राज्ञि धर्मिणी धर्धिष्ठी पापे पापा समे समाः । लगा :
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः ।। तपोनियममुस्थितानां कल्याणं
अर्थात-राजाके धर्मी होने पर प्रजा धर्मी जीवितमपि मरणमपि । होती है, पापी होने पर पापी होती हैं राजा जीवन्तः अर्जयन्ति गुणान ,
जैसा होगा प्रजा वैसी ही होगी। प्रजा राजा मृता अपि पुनः सुगति यान्ति ।। का अनुसरण करती है। जैसे राजा होगा प्रजा अर्थात् तप और नियममें जो अच्छी तरह भी वैसी ही होगी। से स्थित हैं वे जीते हुए तथा मरते हुए भी राजा कहने लगा, “मैं मोहनिद्रामें पड़ा कल्याण को प्राप्त होते हैं। जीते हुए गुणोंका हुआ हू। महारम्भ और परिग्रह में नग्न, अर्जन करते है तथा मृत्यु के बाद सुगति को संसाररूपी व्यापारमे लन। देश, राज्य प्राप्त होते है।
आदिके कर्म करते हुए मेरा मोन नहीं हो त्यक्त्वा जीर्णमिद देह लभते च पुनर्जनम् ।
सकता।" राजा की भावना दीक्षा लेने की
बढती गई। निकटवर्ती जिन मन्दिरमे गया, कृतपुण्यस्य जीवस्य मृत्युरेव रसायनम् ।।
वीतराग देवकी प्रतिमा को वंदन किया भावना अर्थात् प्राणी इस पुराने शरीर का त्यागकर विशुद्ध म बन गई । फलस्वरूप लपक श्रेणी पर पुनः नया शरीर प्राप्त करता है, परन्तु जिस पह'च कर ज्ञानावरणीय आदि चार घातीकर्मोको जीवने पुण्य किये होते हैं उसके लिये मृत्यु क्षय कर गृहस्थावस्था में ही केवलज्ञान प्राप्त ही रसायन है।
किया। उस ममय शासनदेवने मुनिवेष अर्पण अपने प्रियजनों की मृत्यु के समाचार सुन किया तथा जिनदत्त कंबली ने धर्मदेशना दी। कर राजा के मनमें परिणाम विशुद्ध होते गथे केवली भगवानने धर्म के सम्बन्ध धर्मोपदेश तथा उसके मनमें भाव शुद्ध होते गये तथा दिया और अन्त में अपने पूर्व भवका वर्णन इस उसके मनमें संयम लेनेकी भावना उत्पन्न हुई। प्रकार से किया :राजाने विमलवोध मत्रीको सम्बोधन करते हुए दशपुरमे शिवधन नामका एक वणिक रहना कहा, “ हे मन्त्रीवर ! वे मुनि धन्य हैं जिन्होंने था। उसकी धर्मपत्नी का नाम यशोमती था। तप, संयम, राम, संवेगकी आराधना कर सुगनि उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम शिवदेव को प्राप्त हुए है। मैं तो अधन्य हूं जो कि था। जब शिवदेव आठ वर्षका हुआ तो सिर पापरूपी कीचड में लिप्त हूँ।" तब महामत्री दर्द के कारण शिवधन मृत्यु को प्राप्त हुआ ! ने कहा, “आप पापी नहीं है परन्तु सदाचार शिवधन के मरने पर धन चला गया, दारिद्रता पालनसे आप पुण्यवान है । '' इसी सम्बन्धमें का आगमन हुआ। शिवदेवकी माता अपने म त्रीने कहा :
पुत्र सहित उजयणी में आ गई । यशोमती
For Private And Personal Use Only