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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આમાનંદ પ્રકાર याद आ गई । उसने सेनापति को बुलोया सका परन्तु सेठजीने अपने पुत्र को पहिचान और सेना सहित बसन्तपुर की तरफ जाने को लिया । माता पिताकी दशा देख कर जिनदत्त कहा । सेना में रथ, हाथी, घोडे, पैदल चलने को बहुत पश्चाताप हुआ। राजा अपने माता बाले तथा अस्त्र शस्त्र आदि हर प्रकार के पिता को करने लगो, “हे पृज्य । शास्त्री में साधन विद्यमान थे। मार्ग में जाते हुए पुत्र को कुल दिपक रहा है परन्तु मैनें तो अनेक देशों के राजा, राणा, मण्डलिक जिन आपको दुःख ही दिया है ! मैं आप के लिए दत्त को मिलते थे और सभी उसकी आज्ञा का क्लेशकारक रहा हूं, i कृपया मुझे क्षमा करे। पालन करते थे। फिर पिता ने कहा “ये उपालम्बा ने ठीक सेना बढती हुई बसन्तपुर के पास पहुंच नहीं है । जो भी हुआ है अच्छे के लिए ही गई । अरिमर्दन राजाने अपने मन्त्री के द्वारा हुआ है । यदि तुम विदेश न जाने, नो राज्य जिनदत्त राजा के लिए बहु मूल्य उपहार भेट कहा से मिलता था।" फिर एक दूसरे में स्वरूप भेजा। जिनदत्तने उस भेट को अपनी आपबीती सुनाई। स्वीकार नहीं किया और मंत्री से कहा ‘जीव उधर अरिमर्दन राजा विचार करने लगा देव श्रेष्टी पत्नी सहित चाहिए अन्यथा युद्ध कि जीव देन सेट अपनी पत्नी के साथ आठ के लिए तैयार रहो । " राजा ने सेठको देने दिन से शानु राजाक पास है । फिर किसी ने से इन्कार कर दिया ! मंत्रियों ने भी उसे अरिमर्दन राजा को कहा कि जीयदेव उस नये बहुत समझाया परन्तु वह नहीं माना । राजा आर. हुप राजा का पिता है और उसकी पत्नी की मान्यता थी कि सेठ और उसकी पत्नी मेरी माता है और राजा जिनदत्त हे नो राजा को प्रजा है और उनकी रक्षा करना मेरा कर्तव्य विश्वास न हुआ। फिर पूरी नसली की गई है । जब कई दिन तक राजा ने जीवदेव जिससे वह विश्वस्त बुआ । राजा जिनदत्त को मेठको न भेजा तो जिनदत्त राजा की सेना ने मिलने गया तो वह बङः म स मिला। आक्रमण कर राज्य का कुछ भाग ले लिया। जिनदतने विदेशगमन से लेकर राज्य प्राप्ती फिर किसी के कहने पर जीव देव सेठ अपनी तक सब वृत्तीन अरिमर्दनके सामने कहा । मर्जि से अपने राजा की आज्ञा बिना जिनदत्त राजा जिनकल की प्रशंसा करता है परन्तु बाद के पास अपनी पत्नी सहित चला गया। नीचे मुख करके कहने लगा, “मेरे में कोई जीव देव की दशा बिगड चुकी थी। वह गुण नहीं है । राज्य आदि नत्र यहाँही रह अब धनवान नहीं था । पुत्र के घर में से जायगा, साथ में कुछ भी जानेवाला नहीं जाने के पश्चात् वह एक साधारण व्यक्ति रह है।" गया था। उस के पास अबा लक्ष्भी अरिमर्दन राजा फिर कहने लगा, " हे नहीं थी। सेठ अपने पुत्रको पहिचान न सौम्यमते ! आपने जो अपने माता पिता For Private And Personal Use Only
SR No.532029
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 093 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1995
Total Pages27
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size4 MB
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