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धारावाहिक धार्मिक कथा
जिनदत (अन्तिम भाग)
मुनिराज यशविजय ___इस से पूर्व आप पढ चुके हैं कि जिनदत्त ने वोमन का रूप बनाया। उसके पश्चात उसने मदोन्मत हाथी को ठीक किया एक केवल ज्ञानी के कथनानुसार राजा को वामन की यथार्थता का पता चला । वामनने अपना असली रूप प्रकट किया और उसका विवाह राजा की लडकी से हुआ और राज्य भी मिल गया । अब आगे पढिये...
अब जिनदत्त राजा बन गया। इस में सब्वे पुवकयाणं कम्माणं राजा के योग्य मभी गुण विद्यमान थे । वह
पावए फल विवागं । श्रेष्ठ आचार वाला, सौम्य प्रकृति वाला, सदा- अबराहेसु गुणेसु य । चारी था । छत्तीस राजा दिनरात उस की
निमित्तचित्तं परो होई ॥ सेवा करते थे । धर्म के प्रभाव से इन्द्रियों ।
___अथॉत्-सब पूर्वकृत कर्मानुसार फल और मन को प्रिय लगने वाले उसे सब सुख मिलता है, अपराध, गुण अथवा अन्य कोई प्राप्त थे।
कुछ इस में केवल निमित्त मात्र है । दम___ एक दिन जिन दत्त के पास विमलमती, यन्ती ने अपने पूर्व भव में बारह घडी प्रमाग श्रीमती और विज्ञहरी चौठी हुई थी। जिन समय तक मुनि को दुःख दिया था जिस के दत्तके समुद्र में गिरने के पश्चात् जो जो फलस्वरुप उसे बारह वर्ष तक अपने पति घटनाए' उस के साथ घटी थी प्रत्येक ने उसे नल का वियोग सहना पड़ा । जो भी व्यक्ति बताया और फिर कहने लगी, “स्वामिन् ! को दुःख प्राप्त होते है उनका एकमात्र कारण आप से अलग होने के पश्चात् जिसे दु:ख कर्म ही है । जीवों को सुखदु ख चक्र की का हमने अनुभव किया वे बहुत अधिक थे भान्ति बदलता रहता है । अत: तुम्हे सुखतथा हम किसी को कह नहीं सकते थे।” दुःख में एक समान भाव रखना चाहिए । राजा ने कहा कि यह सब कर्मो की लीला राजा का समय सुख पूर्वक व्यतीत हो रहा था। है । कहा भी है--
एक दिन जीनदत्त को माता पिता की
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