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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - धर्म की प्राप्ति मात्र धन से नहीं उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज धर्म को पैसे के बल पर नहीं खरीदा कोसों दूर ले जाएंगे । तामसिक भोजन से जा सकता । धर्म तो त्याग और संयम से धर्म में मन नहीं लगता। निर्मल और त्याग संभव है । वासना और विलासिता से स्वयं भाव भी उन्हे प्राप्त नहीं होगा। धन के को बचाना ही धर्म हैं । त्याग की भावना वैभव और ठाठ-बाट के प्रदर्शन गलत और ही धर्म का श्रेष्ठ स्वरूप है। चोरी, अन्याय असंगत है । स्वय के मेहनत से कमाये हुए शोषण और गलत कार्यों से कमाया हुआ धन पर बिश्वास रखो । दहेज़ से और माता धन यदि दान में दिया जाता है तो वह दान पिता द्वारा अजित सम्पत्ति पर मोह मत करो नहीं है । श्रम और न्याय से कमाया हुआ इससे पुरुषार्थ भावना समाप्त होती है । धन ही धार्मिक कार्यों में सफल होता हैं। आपके दिखावे और प्रदर्शन से गरीब व्यक्ति धर्म की साधना गरीब, अमीर सभी एक बरबाद हो जाएंगे। आपका धन वैभव स्थायी समान कर सकते हैं । सभी चौतन्य ज्योति तो है नहीं । जब यह चला जाएगा तब से परिचय कर सकते है । दान देकर जो आपका जीवन घोर संकट में पड जाएगा । बडाई और ख्याति के चक्कर में रहते है वे धम की गहराइयों में जाने का उद्देश्य जीवन धर्म को धारण नहीं कर सकते । धर्म के में पूर्ण समता का निर्माण करना है तथा ऐसा लिए निर्मल परिमाण बनाना आवश्यक हैं। करने पर ही जीवन का आनन्द्र लिया जा तृष्णा को सीमित करके धन और धर्म का सकताहै । धर्माचरण से अनिश्वरता का ज्ञान समीकरण करना होगा। पेट रोटियों से सत्यता तथा निराकुलता का सहज अनुभव भरेगा रुपया, पता, सोना और चांदी से होता है । धर्म में रूढिवादिता को स्थान नहीं । धार्मिक परिवार वे ही है जो होटलों नहीं दिया जाना चाहिये तथा वैज्ञानिक पद्धति और क्लबों से अपने पारिवारिक सदस्यों को अपनाना चाहिए । इससे जीवन में प्रफुको दूर रखते हैं । जिन परिवारों में होटल लता प्रगट होगी । जीने की कला के लिए और क्लब की संस्कृति ने प्रवेश कर लिया धर्म श्रेष्ठ माध्यम हैं । जो लोग धर्म के उन परिवारों में सुख, शांति और चैन दूर वास्नविक स्वरुप को जानते पहचानते नहीं हो जाएगी। बे नै कता से भी अपने को वे आंखे होते हुए भी चक्षु विहीन हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.532025
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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