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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिन्होने घर्म की गहराइ को नहीं समझा वे जीवन को मिथ्या मार्गी बना लेते हे । दुःखों से मुक्ति दिलाकर सुखी बनाता है । वास्तव में जो प्राणियों को सुख की ओर ले जाते वही सच्चा धर्म हैं । चित्त में निर्मलता परिणामों शुद्धि तथा श्रेष्ठ आचरण ही धर्म की उच्च स्थिति हैं । जिन आचरण से दूसरों को कष्ट हो वैसा आचरण नहीं करना चाहिए । प्रवृत्ति ऐसी होनी चाहिए जो आपके लिए शांति का कारण बनें जीवन में किये गये पुण्य, पाप ही साथ जायेंगे अन्य नहीं । अतः अच्छे कार्य करके मोक्ष प्राप्ति हेतु का ही एकमात्र लक्ष्य होना चाहिये | साधना हेतु मात्र व्रत, उपवास माध्यम ही नहीं उचित अनुचित का पूर्ण ज्ञान भी जरूरी है । जो जीवन में शांति का लक्ष्य बनाये हुए है वे साघनारत कहे जाते है । साधना में तल्लीन साधक खोटे विकल्पों से बचता है । व्यर्थ की बात सोचने वाले सदा रोगी रहते | क्षमा एक महान शस्त्र है। इसे जीवन में धारण किये बिना कोई भी महान नहीं बन सकता। जिसके जीवन में मैत्री का विकास नहीं हुआ वे परमात्मा से परिचय नहीं कर सकते । जो सच्चा भक्त है वही भगवान बन सकता है । जिन्होंने शरीर से आसक्ति घटायी है वे ही ८) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्म ज्योति एवं चैतन्य का दर्शन करते है । जीवन में जो जितना अभिमानी होगा उसका जीवन उतना ही अंधकारमय रहेगा । जो अहंकारी होता हैं वह अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता । जिसके जीवन में मैं और मेरे पन की भावना रहेगी वह व्यक्ति ही अहंकारी होगा । अहंकार जो कर रहा हैं वह अपना जीवन प्रकाशित नहीं कर सकता है । संतो ने कहा कि पूजा, पाठ एवं जप का लाभ तभी होगा जब जीवन में समता, आस्था एवं धर्माचरण का ग्रहण किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो इनका लाभ संभव नहीं है । संसार में कहीं भी सुख नहीं है । यदि संसार में सुख होता तो तीर्थंकर इसको क्यों त्यागते । अनेक राजा, महाराजा वैभव और ठाठ-बाट को त्याग कर क्यों संत का जीवन ग्रहण करते ? वे वनों में क्यों चले गये ? संसार में सभी दुखी है । कोई कम दुखी हैं तो कोई ज्यादा, परंतु हैं सभी दुखी इसलिए जीवन श्रम को महत्व दें । अपने भावों को निर्मल बनाएं | नियमादि का निरन्तर पालन करें। जिससे परिवारों में धार्मिकता एवं सुख शांति की लहर छा जायेगी । For Private And Personal Use Only
SR No.532025
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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