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ऐसी दुनिया की कौनसी चीज है जो धर्म से न प्राप्त होती हो ? 1 मात्र एक धर्म के प्रभाव से ही आज आप लोग ऋद्धि सिद्धि को प्राप्त किये हुए है । सुन्दर शरीर आप को मिला हैं । पुत्र, परिवार, इज्जत, कीर्ति, पचेन्द्रिय की पटुता, तमाम प्रकार के सुन्दर से सुन्दर साघन मिले हुए है । ये सब एक मात्र धर्म के कारण से ही प्राप्त हुए है ।
कुछ लोग यह कह सकते है कि दीर्घायुर्भव पुत्रवान भव, इत्यादि आशीर्वाद देने में क्या हरकत है ! जैन साधु धर्मलाभोऽस्तु' ऐसा आशीर्वाद क्यों देते हैं ? पहले कह चूका कि धर्म में सब का समावेश होजाता है, और यदि 'दीर्घायुर्भव ।' इत्यादि आशीर्वाद दिया जाय तो इसका कोई महत्व नहीं है । क्योंकि -
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दीर्घायुर्भव ! भण्यते यदि,
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तदा तन्नारकाणामपि,
सौरव्यार्थ धनवान भवेद,
यदि पुनस्तन्म्लेच्छकानामपि ।
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सन्तानाय च पुत्रवान भव,
पुनस्तत ककुटानामपि तस्मात सर्वसुखप्रदोऽस्तु भवतां, श्रीधर्मलाभा श्रिये ॥
अर्थात- यदि कहते है कि दीर्घायुष्य हो, तो नारकी के जीवों को भी लम्बी आयुष्य होती है । सुख के लिये घनवान हो तो म्लेच्छों के पास भी धन तो बहुत होता हैं । सन्तान के लिये पुत्रवान हो, तो कुक्कुटों को भी बहुत बच्चे होते है । इसलिये जैन साधु समस्त सुखों को देनेवाला कल्याणकारी 'धर्म' - लाभ' का आशीर्वाद देते है ।
दुनियादारी के पदार्थों का प्राप्त होना कोई बडी बात नहीं है । पैसा, पुत्र, स्त्री, " महल, मकानात इत्यादि साधन ससारी मनुष्यों के लिये जरुरी है. परन्तु उसका सदुपयोग और दुरुपयोग दोनों हो सकता हैं । किन्तु समस्त चीजों को देनेवाला इहलोक और परलोक दोनों को सुधारनेवाला धर्म ही है ।
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