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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करइ अठाई कल्प केतला, उछव पार न लहीइ । पस भरीइ देहरई संचरीइं, सहि गुरु वंदणि जईई। करइ सनात्र पात्र नितु नाचइ, बाजइ भुगल मेरी । आबिउ परव पजूसण प्रीयडा, नारि भणइ भलेरी ॥ १ ॥ कल्पसूत्र पधरावण-रात्रि जागरण पुस्तक प्रीय जगावीइ रे, लीजइ लक्ष्मी लाह । वली वली नवि पामीइ रे, अवसर अंगि ऊमाह । अवसरि अंगि उमाहु प्रीयडा, वली वली नवि लहीई । पोसालई जई पाथरि खोला वार वार तुम्ह कही। पूरव पुण्य प्रसादिइ स्वामी, संघ दीइं बहुमांन । तु तिहारइ चाल म चूके, देवे फोफल-पांन । पहिलु पुस्तक घरि पधराबी, तेडी जइ श्री संघ । रातइ राती-जगु करीजइ मांडी रूयडा रंग । मेलइ सजन मेलावइ मोटां मंडपि भली सजाई । दी तंवोला भरी खोला, कंतम करि कृपणाइ ॥२॥ अमारि प्रवर्तन कंत मनावी बातडी रे, हरखी मंदिरि नारिं । वरु करी वरतावीइ रे, आज थकी अमारि । आज थकी अमारि स्वामी, वेगि करी वरतावउ । माछी तेलीय वली वागरी, रंगारा मनावउ । वेगि जाई कठिन कसाई, आपी बंछित दान । अणगल पाणी ढोर न पावां, महीपलि मांगु मोन । साप-खजूरां वीछी अनेरा, जाणीय धाय न देवा । खांडणि पासणि लीपणि गूपणि, पाप कर्म न करेवा । वलीय विशेषइ जीव तणु बिध, टाल विविध प्रकारि । आप-बलिई पर- बलिइ पनउता, वरतावउ अमारि ॥३॥ कल्पसूत्र पधरावण घरि धरि गूडीय उछलइ रे, तलियां तोरण यारि । मस्तकि खप भलु भरचउ रे, कूभर चडचडं तोखारि । આત્માનંદ પ્રકાશ For Private And Personal Use Only
SR No.531793
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 069 Ank 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1971
Total Pages60
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size5 MB
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