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कुअरि चाउ तोखारि तेजिह, रूपई मदन अवतरीउ । कलप तंणु पुस्तक करि थापिउ, श्री संघइ परवरी । ढोल दमामा अनइ नफेरी, ताल तिसी परि वाजई । गिरूई सादिई गोरड गाजइ, नादर अंबर गाजई। गण गंध्रव बहु वडूआ भोजिंग, भाट भणइ जइकार । श्रोवन का वस्त्र सावद, दीजइ दान अपार । लोक अटाले चडीया माले, जोतां कोतिग भावइ । आज सखी सुलतांन सनाखत, प्रीय पुस्तक पधरावइ ॥४॥ व्याख्यान श्रवणादि पुस्तक प्रीय पधरावीइए, पहुतउ सहिगुरु पासि । चतुर्विध श्रीसंघ सांभलइरे, वांचइ मुनि उल्हासि । मन उल्हासिहं कल्प तणी गुरु, करतां नाबइ वखांण । नालिकेर नई साकरलिंगा, दइ तंबोल सुजांणा । ठवणी कमली नउकरवाली, विण महुपती न होई । झलमल पहिरामणी चंइया, पाटसमेहले जोई । मंगल आढई मेरु भणीजई, कीजइ दीपक-माल । अवसर आवई पात्र ज लीजई, सीलइ काज रसाल । इंद्रमाल उछव सू पहिरी, इंद्र तणां फल लही । परब पजूसण केरउ महिमा, प्रीयडा के तु कहीइ ॥५॥ ज्ञान-पूजापोछणादि ज्ञान तणी पूजा करउ रे, जिम लहु सुख नरवाणि । ज्ञान विहूणा माणसां रे, पसूअ समाणा जाणि । पसूअ समाणा जोए प्रीयडा, शान विहुणा प्राणी । शान तणी पूजा करउ परिछल, हीयडर आणंद आंणि । कमलवनां कापडां कथीया, कमषा केती वानी । श्रोवन फूले सहिगुरु पूजो, जे गुरु होइ शानी । नाना-विध नांणा सहिनांणा, अक्षाणां सोहावउ । मधुरीम वाणी मंगल बोलइ, हरि सहिगुरु वधावउ । राग रोस ने मनथी मेल्हउ, मरम न बोलु मोसुं । करउ उपवास करी पडिकमणां, एरव भलील्यउ पौसउ ॥६॥
પયુષણ પર્વ : વિશેષાંક
२०.१
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