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વિવિધ વિષયે.
૧૬૩ कदापि बहुत लोकोके साथ विरोध नही करना क्युंकी माहाजन बमा पुर्जय हे देपीये फुफामा वारता नागंजको जी घणी कीमीयां जक्षण करजाती है। और नी सुणी,
वहु नाम समर्घाना ! समुदायो हिउर्जयः॥
तृणैराथै ष्टतारज्जु । र्जायते नाग बंधनम् ॥ १ ॥ असमर्थ जी बहुत लोक इकठे हो जाय तो यह समुदाय वमा उर्जय हो जाता है जैसे घासके त्रणासे बनाया हुवा रज्जु रस्सा हाथीको जी बंधन करनेको समर्थ होता है इसलिये कहा हे की.
समं तु समुदायेन । विरोधो जायते तदा ॥
यदा नाग्य विपर्यासो । नृणामुदयमाश्रयेत् ॥ १॥ जब प्राणीयोका नाग्य विपरीत होता हे तबही समुदायके साथ विरोध होता हे इसलिये सर्वके साथ मीलके रहना चाहीये. क्युकी संप नही वहां जंप नही । और जंप नही वहां सुख तो होवे हो कैसे । इसलिये संप विनय नम्रता रखके अपनी फरज अदाकरते रहे. देखीए जैसे फल आनेसे आम्रवृक्ष जुकता रहता हे तेसे ही मुनिजनोको गुण बहु मान प्राप्त होनेसें अनिमान पर न चढकर । नम्र स्वन्नाव रखना जचीत हे अब मे जेवट ए ही सलाह देता हुं को आपने अनेक कष्ट सहन करके यह पद हांसोल कीया हे उसका सुंदर फल चतुर्विध श्री संघको चखाके सब जहानका नला करनेमें तत्पर रहे.
વર્તમાન સમાચાર, धामणोदमे नीकली हुइ अपूर्व जैनमूर्तिके दर्शनार्थ-रतबामसें मुनि महाराज श्री हंसविजयजीका गमन.
अशोक वृदः सुरपुष्पवृष्टि-दिव्य ध्वनिश्वामरमासनं च । जामंमलं दुंदुनिरातपत्रं, सत् प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥ १॥ इस काव्यमें दर्शाये हुवे दिव्य आठ महा प्रातिहार्यका कोतर काम
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