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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 325 શ્રીમદ્ વિજયાન’દસૂરિની જય’તી. यदि बुद्धिशाली साधुमंडल के साथ ढुंढक मतको वोसिराय दिया और मुहपट्टीयां तोड दीइ तथा हजारा ढुंढक श्रावक श्राविका प्रतिबोध के शुद्ध सनातन जैन श्वेतांवर संवेग धर्म की दीक्षा संवत. १९३२ में प्रायः हजार ataar der विहार करके अमदावाद शेहेरमें श्री बुधिविजयजी उर्फ चुटेरायजी महाराज के पास अंगीकारकीइ तथा श्री शत्रुंजय गिरनार आबुराज art तीर्थो यात्रा करके जन्म सफल हुवा माना. संवत १९४३ में पादलिपुराने पाता में अनेक देशदेशांतर के संघने मिलके महाराजको आचा पद अर्पण कीया उसवक्त ए महात्मा श्री विजयानंदसूरीश्वर नामसें मशहुर हुवे इनोने जैन तत्रज्ञानका दर्शन कराने आदर्श याने आयना समान जैनतत्वादर्श ग्रंथ बनाया तथा अज्ञानरूप अंधकारको नाबुद करने के वास्ते सूर्य समान ज्ञान तिमिर जास्कर ग्रंथ बनाया तथा तत्वस्वरूपका निर्णय करनेकु महेज के समान तत्वनिर्णय प्रासाद नामा ग्रंथ बनाया इत्यादि तत्वज्ञान गर्जित अनेक ग्रंथ तथा पूजा संग्रहादि बनाके जैन तथा जैनेवर arunt अपने आधार निचे दवाइ इन ग्रंथोंमें एसा तो ययार्थ उल्लेख कीया की जीसको पटके एक नामांकित सन्यासीजीने जीसके ५१ तरके अर्थ होवे वैसा मालाबंध काव्य बनाके महाराजकी सुति की. और पत्र भेजके दर्शाचाथाकी सारीरात आपके दो ग्रंथ देखके मुजे एसा आनंद आयाकी मुजे एक जगतको बो घुसरी दुनीया में आगये. इत्यादि बहुत सा दिखाया महाशयो – महाराजश्रीने अपनी बुद्धिमत्तासें अमेरीकनतक जैन धर्मको मशहूर कर दिया और पाश्चिमात्म विधानोकुं अपने आजारी बनादिये इससे ht. etara उपकार मानके नविन श्लोककी रचना पूर्वक आप जैन धर्म धूरंधर हो मेरेपर उपकारीहो इत्यादि प्रकार स्तुति छपवा दिइ. विचक्षणो-- मूर्तिपूजाके हिमायती इन्महात्माने पंजाबादि अनेक देश नगरोंमें अंजनशलाका प्रतिष्ठाकरके संख्याबंध परमात्माकी प्रतिमास्थापनको सद्गृहस्थी - पुस्तकोबार तथा शास्त्र संशोधनका कार्यमेंजी इनाने कुछ कहर रखी नही है. जीनवाणी रक्षक वास्ते तो इनोका इतना प्यारथाकी जैसलमेर में तुमसे करनेकी मेने आज्ञा मंगवाई जब वहांका नंमार खुझनेकी तथा प्राचिन पुस्तक लिखाना शुरु कीया तथा भोयरेमें पुस्तक रक्षण के वास्ते पथरकी For Private And Personal Use Only
SR No.531131
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 011 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1913
Total Pages56
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size4 MB
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