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આત્માનંદ પ્રકાશ.
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ताको प्राप्त होता नहीहे और श्रोताजनोमेंनी अच्छे संस्कार परते नहीहे इसलिये जीस महात्माकी जयंती करनोहो उस महात्माकी जींदगीका अन्यास करके तथा जीवन दृष्टांतो जन समाजमें प्रसारके बाल वृछादिके हृदय कोमल बने पवित्र होजाय महात्माके पगले चननेका इरादा होजाय वैसी जयंती करनी उचितहै.
गुणझो!-इतना प्रसंगोपात कहकर अबमें मूल उपदेश पर आताई.
यस्याननानिर्गतावक् संशयाश्च मपोहति रविप्रनेवतंसूरि विजयानंददस्तुमः ॥१॥ कारुण्यामृतपूर्णाय शासनोधारकारिणे विजयानंददात्रेच सरिशाय नमो नमः ॥२॥
महाशयो-पंजाव देशके अंदर व्हेरा गाममें निवास करनेवाला ब्रह्मक्षत्रिय गणेशचंकी पत्नि रुपांतत्रियाणीकी कुखसे संवत १८९३ में महाराजश्री आत्मारामजीका जन्म हुवाथा संवत् १९१० में जीवणरामजी पास इनोने लघुवयमें ढुंढकमतकी दीक्षा अंगीकारकरीयी इनोकी बुधि बड़ी प्रबलथी इसे वोह एक दिनमें ३०० श्लोक कंठस्थ करशक्तथे यादास्त शक्ति तो एसो धरातेथेकी इनोकी मुलाकातके लिये एक दफे आया हुवा आदमोको पायः सारी उमरतक नूलतेनहीथे हजारो गाम नगरोंमे विचरे हुवे गामोके नाम तथा वहां निवास करते अग्रगण्य श्रावकोके नाम तथा कोसकी गीणती वगेरे उपयोगी बाबतां विहार करनेवाले साधुओकुं आप अच्छी तरां बता शक्तेथे एसी अलोकिक प्रतिनाके बलसें ढुंढकमतमें प्रचलित सर्व शास्त्रके थोमेहि वर्षोंमें आप पारगामी होगयेथे फेर इनोकुं शक पेदा हुवाकी जगवानका अनंत ज्ञान क्या इतने टवा ग्रंथोमें आशक्ताहे नहि नहि तत्वज्ञानसे जरपूर न्यायगर्मित टीकाके ग्रंथ जी होने चाहिये एसा विचार करके सिधान्तके प्रौढ ग्रंथोमें प्रवेश करनेके लिये यद्यपि ढूंढक लोक व्याकरणादिनहि पढतेथे तथापि इनोने व्याकरण काव्यकोष अलंकार और तर्कशास्त्रोका अज्यास कीया फेर
आगमरुपी आरिसामें अवलोकन करनेसें शुद्ध स्वरुप तथा शुफ देवगुरु धर्मका जान हुवा. और ढुंढकपंथ मनाकरिपत शास्त्र विरुधहै एसो खातर। करके तथा सोनेकीतरां परीक्षा करके श्रीमद् विसनचंजी तथा हाकमराय
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